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________________ या ज्ञान मीमासा भी कहते हैं। पूर्व मीमांसा का मूल-ग्रन्थ जैमिनि का सूत्र है। जिसकी सूत्र संख्या २७४५ है। मीमांसा सूत्र १६ अध्यायों में विभक्त है। जिनमें प्रथम १२ अध्यायों के द्वादशलक्षणी मीमांसा भी कहते हैं। और अन्तिम ४ अध्यायों को 'संकर्षण काण्ड' या 'देवता काण्ड' के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि जैमिनी ने मीमांसा के आठ आचार्यों के मत का उल्लेख किया है- आत्रेय, आलेखन, आश्मरथ्य, ऐतिशायन, कामुकायन, कार्णाजिनि, बादरायण, बादरि तथा लालुकायन। जैमिनी सूत्र पर शबर स्वामी (२०० ई०) का प्रसन्न गंभीर भाष्य है जिसे 'शबर भाष्य' कहा जाता है। प्राचीन वृत्तिकार उपवर्ष (१००-२०० ई०) भर्तृहरि, भवदास, देवस्वामी आदि ने वृत्तियाँ लिखी। मीमांसा प्रणेता जैमिनी के काल को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं- 'राधकृष्णन' यह मानते हैं कि 'जैमिनी' ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के महापुरूष थे। हिरियन्ना का मत है कि उनका जीवन काल ईसा पूर्व दूसरी और तीसरी शताब्दी के मध्य बीता था। पतञ्जलि जो ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के मध्यकाल में हुये थे अपने महाभाष्य में मीमांसा की चर्चा की है। अतः यह मानना तर्कसंगत ही जान पड़ता है कि जैमिनी, पतञ्जलि से पूर्व के हुये होंगे। सांख्य और योग के समान मीमांसा और वेदान्त को भी समानतंत्र कहा जाता है। क्योंकि इनमें काफी समानता है- मीमांसा सूत्र का प्रथम सूत्र है- 'अथातो धर्म जिज्ञासा। और वेदान्त सूत्र का प्रथम सूत्र है- अथातो ब्रह्म जिज्ञासा (जब ब्रह्म की जिज्ञासा करनी चाहिये)। दोनों ही दर्शन वेदाश्रित है। इसलिये रामानुजाचार्य ने मीमांसासूत्र और वेदान्तसूत्र को एक ही शास्त्र के पूर्व तथा उत्तर खण्डों के रूप में स्वीकार किया गया है। 'शबर-भाष्य' के दो व्याख्याकार थे १. प्रभाकर मिश्र, २. कुमारिल भट्ट । और इन दोनों ने दो मत स्थापित किये। प्रभाकर मिश्र का मत 'गुरुमत' कहलाता है। कुमारिल के प्रभाकर शिष्य थे उनकी प्रखर बुद्धि को देखकर कुमारिल ने उनका नाम 'गुरु' रख दिया। कुमारिल भट्ट के तीन विशालकाय वृत्ति ग्रन्थ हैं- श्लोकवार्तिक, 111
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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