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________________ त्रिगुणम विवेकिविषयः, सामान्यमचेतनं प्रसवधर्मि । व्यक्तं तथा प्रधानं तद्विपरीतस्तथा च पुमान ।।११।। ११वीं कारिका में पुरुष को प्रकृति के स्वरूप से भिन्न यथा- त्रिगुणातीत, विवेकी, अविषयी, असामान्य, चेतन तथा अप्रसवधर्मी कहा गया है। १०वीं कारिका में पुरुष को प्रकृति के स्वरूप वाला कहा गया है यथा- अहेतुमत, नित्य, व्यापी, निष्क्रिय, एक, अनाश्रित, स्वतंत्र, अलिंडग है। पुरुष की सत्ता सिद्ध करने के लिये सांख्य कारिका में निम्न कारिका दी गयी है संघातपरार्थत्वात त्रिगुणादिविपर्ययादधिष्ठानात् । पुरुषोऽस्त् िभोक्तृभावात् कैवल्यार्थ प्रवृत्तेश्च ।। १७ ।। पुरुष नित्य और एक होते हुये भी शरीर भेद से बहुत हैं- सांख्य पुरुषों में संख्यागत भेद और गुणगत अभेद मानता है। इस प्रकार सांख्य पुरुष बहुत्व को स्वीकार करता है- निम्न कारिका से स्पष्ट है "जनन-मरण-करणानां प्रतिनियमाद युगपत्यप्रवृत्तेश्च । पुरुष बहुत्वं सिद्धं त्रैगुण्य वपर्ययाच्चैव ।। १८ ।। अर्थात् जन्म-मृत्यु और इन्द्रियों के प्रतिनियम से या प्रत्येक शरीर का जन्म-मरण और इन्द्रियों के संघात के पृथक-पृथक होने से तथा त्रैगुण्य के विपर्यय से पुरुष का बहुत होना स्वयं सिद्ध है। विभिन्न पुरुषों का जन्म अलग २ होता है और मृत्यु भी अलग २ होती है और ज्ञानेन्द्रिय भी अलग-अलग होती है। अन्यथा एक पुरुष के जन्म से सबका जन्म और एक पुरुष की मृत्यु से सबकी मृत्यु हो जाती। इस प्रकार यदि कोई पुरुष किसी रुप गन्ध आदि का अनुभव करता तो सभी पुरुष वही करते। इससे यही सिद्ध होता है कि पुरुष एक न होकर अनेक है। प्रकृति-पुरुष सम्बन्ध
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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