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________________ १. प्रकृति से तात्पर्य केवल 'कारण' से है यह कारण मात्र प्रकृति है जो किसी का कार्य नहीं है। २. कुछ तत्व केवल कार्य होते हैं जो किसी को उत्पन्न नहीं कर सकते हैं-विकृति ये सं० में १६ हैं ३. कुछ तत्व कारण और कार्य दोनों होते हैं ये संख्या में सात होते हैं। ४. और जो तत्व न तो प्रकृति कारण है न विकृति न कार्य है वह पुरुष है। यह चेतन आत्मा है। 'न प्रकृति न विकृति पुरुषः ।' (साख्य कारिका) सत्कार्यवाद प्रत्येक कार्य का कोई न कोई कारण होता है बिना कारण के कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। जैसा कारण रहेगा उससे वैसी ही प्रकृति के कार्य की उत्पत्ति होगी। इस सिद्धान्त को कारणकार्यवाद कहते हैं। कारण-कार्यवाद के दो रुप होते हैं- १. सत्कार्यवाद २. असत्कार्यवाद सांख्य दर्शन सत्कार्यवाद का पोषक है। इसके अनुसार कोई स्त्री कार्य अपनी उत्पत्ति से पूर्व कारण में अव्यक्त रुप से विद्यमान रहता है। इसस प्रकार कारण और कार्यरूप एक ही वस्तु के दो रुप है। कारणावस्था अव्यक्तरुप और कार्यावस्था व्यक्त रुप है। सांख्य दर्शन गीता के इस सिद्धान्त पर टिका हुआ है- 'नासतो विद्यते भवः नाभावो विद्यते सतः । अर्थात् असत् से सत् की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। असत्कार्यवाद के अनुसार कार्यय अपनी उत्पत्ति से पूर्व अपने कारण में विद्यमान नहीं रहता है। कार्य की सत्ता उत्पत्ति से ही आरंभ होती है इस मान्यता के कारण असत्कार्यवाद को 'आरम्भवाद' भी कहते हैं। यदि कार्य अपनी उत्पत्ति से पूर्व कारण में विद्यमान रहता है तो वह सत होने से उत्पन्न' है फिर उत्पत्ति का प्रश्न ही नहीं उठता है। उसकी दुबारा उत्पत्ति पुनरुत्पत्ति है जो व्यर्थ और अनावश्यक है इसको
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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