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________________ सूचना परमसुहृद जैनमतावलम्वी भाइयों को विदित हो कि कविवर भूधरदासजोंने बडे परिश्रमसे शास्त्रका सारभू धरबिलास नाम ग्रन्थ भाषा ललितं अनेक छन्दोंसे सर्व साधारण के उपकारार्थ बनाया किञ्च इसमें जहाँ तहाँ संस्कृत प्राकृत गुजराती आदि भाषा होने के कारण प्र त्येकके समझमैं आना कठिनथा अतः इसी परमउपका • रौ ग्रन्थ मैसे एक शतक सुन्शी अमनसिंह जी ने महाज श्रम और उत्साहसे अनेक कोश वा छन्दरचना के अन्य एकत्रित करके शब्दार्थ बा सरलार्थ टोकासे अति सरल कर दिया पुनः विनाछप सलभ कैप्तिहो और छापखानों मैं यवनादि कर्मचारियों के हाथ मैं जाने से धर्म को हानि होने के कारण हमारे भाई कोई भी पुस्तक नहीं छपाते क्या किया जावे इस विचारमैं दैवयोगसे भारत दर्पण यन्वाधिपति मिलगया इस यन्त्र मैं सब कर्मचारी ब्राह्मण पानौवालाभौ भिश्ती नहीं इत्यादि परम सादर, से छापकर पूर्ण किया अब समस्त धर्मावलम्वो इस को कौडियोंके मूल्यमैं ग्रहण कर अनशीजी के परिश्रम की सफलकर और उत्साह बढ़ावै जिससे ये शेष भूधरविला स कोभी इसी क्रमसे पूर्ण कर आपलोगोंकी समर्पणकरें। पंण्डित काशीनाथ शर्मा भारतदर्पगा यन्लाध्यच महल्ला आमिजौ ( दियौ)
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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