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________________ মুষলামন मत्त गयन्द छंद देखर जोर जरा भटको यम' राज महीपतिक अ गवानौ । उज्जल कोश निशान धरे बहु रोगनको सँग फौज पलानी । काय पुरौ तन भोग चलोजि स' आवत योवन भूप गुमानौ । लूट लई नगरी सगरी दिन; दोयमखोयहिनाम निशानी ॥ ४२ ॥. शब्दार्थ टीका ( देखा ] देखो (भट ) शूर वीर (महीपति ) राजा ( अगवानी) आगे चलने वाला (उज्जलकेश) सुपेद वाल (निशान ) भंडा(पन्ना नी) पेलदई ( काय) शरीर (पुरी) नगरी ( भूप) राजा (गुमा नी) मान वाला सरलार्थ टीका बुढापेके शूर बीर यम राजाकअगबानो केवल को देखो सुपेद यौली के. भडे लेकर बहुत मेरोगों की फौज अपने साथ में पेल दई योवनरू प राजा जी अभिमांनौं था तिस्त आने पर काय पुरो नगरी छोड़ कर भाग चला सारो नगरों दिन दोय में लूट कर नाम निशानी खोद ई भावार्थ शरीर जाता रहा दोहाछन्द .
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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