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________________ भूधर मशतक ४१ लोग हार खरे, मारग निहारते । यान नढे डो लते हि; भीने खर बोलतेहि, काडको तो ओ रमेक नीके न चितारते । कौलों धन खांगे तेल, कहे तो न जांगे तेड, फिरें पाय नांगे कां " गे, पर पग भारते । एते पै अयानागर; भानार हा विभोपाय, धृग है समझ तेड, धना संभा रते ॥ ३४ ॥ शव्दार्थ टीका ( कंचन ) सोना (भंडार) कुठियार (पुंज) समूह ढेर ( द्वार) द रवाजा ( मारग ) रस्ता ( निहारते ] देखते ( यान ) सवारी [ भी मे) इतके मुलायम (नेक) तिनकभी ( नीके) भलेप्रकार ( चिता ते ] चितवनकरते ( कोलों ) कबतक [ तेच ) तेपुरुष (पायनांगे ) नांगे पाव [ कांगे ) कमले ( एतेपै ] इतने पर ( अयाना ] भोला अनजान ( गरभागा ) मानवाला ( विभो । संपत्ति सरलार्थ टोका Woh कुठियार भरे और मोतियों के ढेर पर बहुतसे मनुध दारे खरे र 'स्ता देखते सचारो पर चढे हुवे फिरते धीमे बोल बोलते किसीकी घोर farait raप्रकार न चितवन करते कब तक धनवांगे धन निवर ना गा फिर ऐसी गति होगी कि कोईनामभो उनका नलेगा और परायेपै दाड़ते फिरेंगे इतने पर अज्ञान संपत्ति पाकर मान वालारहा तिन
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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