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________________ भूधरजैनशतक मैं नेअंजली अपने सेस पर धरी है अर्थात् प्रथाम करते है मत्त गयन्द छंद या जग मन्दि• मै अनिबार अ' ज्ञान अन्धेर छ यो अविभारी । श्री जिनको धुनिदीप शिखाशु चि' जो नहिं होय प्रकाशनहारी। नौ किसमां ति पदारथ पांतिक' हा लहते रहते अविचारी । याविध सन्त कहैं धन है धन' हैं जिन बैन बड़े उपकारी ॥ १५ ॥ शब्दार्थ टीका (मन्दिर) घर (अनिवार) नहीं दूरहोने वाला (धुनि) शब्द (दो पशिखा) दियेको लौ (प्रकाशनहारो) उजाला करने वाली (भांति) राति (पदार्थ) बस्तु (पति) पङ्कति (लहते ) देखने (अधि चारो) बिना विचार वाला ( धन्यहै ) यह शब्द अति आनन्दमैं अद्भुत वस्तु देख कर दूसरे के प्रति गोलाकर ते है ( वैन) बचन (उपकारी) सहायक सरलार्थ टीका एससंसार रूप घरमें प्रति भारी अज्ञान रूप अन्धेर छा गया था योनि
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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