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________________ सूधरजनशतक शब्दार्थ टोका (नयो ) औदन्ते अर्थात् फने वाले (नामि ) आदि नाथ खामी के पि तो या नाम है (भूपाल) राजा ( बाल ) बालक (सकुमाल) नरम कोम ल (सुलक्षणा ) मले लक्षण वालो (वर्ग) जपर का लोक (पाताल ) नीचे का लोया (पाल ) मोम इद पालगे याला (माल) माला समूह (प्रतक्ष ण) सनसख चौडेचपाट नाहर (द्रग) अाँख (विशाल ) बडो (बर) प्या रा उत्तर ( नख) नाखून ( चरण ) पाय (बिरजहिं ) शोभित हैं (रूप) स नो नूरत (रसान्त ) रस भरा (मराल ) हंस (लख ) देख (लनहिं) सफाचे (रिपु ) बैरो (काल) मरना ( रिसहेश ) आदि नाय खामो का ना म (जन्म) पैदा होना ( जनाल) कोचड़ काई सिवाल ( दह) पानी का गहराध भयर (वक्षात ) बुरा हाल (अति) बहुत (भो) अव्यय संबोधन अर्यमें (दयाल ) जपावन्त सरलार्थ टीका नाभि गमा वा बालक कोग श्री प्रादिनाथ खामी जो कोमल और भले लबग वाले हैं जेनते रहो और स्वर्ग पाताल लोया के पालने वाले पुनः प्र सपा गुणों को माला काग धादि माय साम्रो सेवन्ते थो ओर कमे हैं आ दिनाथ स्वामी बड़ी प्रांगण श्रेष्ट माथे वाले है जिन के लालं नाखून चरणों पर शोभायमोग के रमसरी सूरत है और जिन को सुन्दर चाल देख कर है समा में सजा, मो रिमोश हम अपने बैरी काल रूप जाल और जन्म रूप भयर को कोचड़ में फसे है भावार्थ जन्म मरण के दुःख भोग रहे हैं इस टुप मे प्रति बुरा हाल है भो दयास इस से निकाल ओर ये दुख हमारे दूर कर श्री चंद्राभप्रभुस्वामी को स्तुति Anemprogram
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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