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________________ মুঘলঘন । शब्दार्थ टीका (का उत्सर्ग सुद्रा ) ( काय उत्सर्ग मुद्रा) शरीर छोडना जोग की रीति का नाम ( का उत्सर्ग सुद्रा) जोग माधन को एक रीति का नाम है जो योगी पुरुष अपना शरीर ख स्वभाव पर अर्थात् असली हालत पर छोड़ देते हैं (ठाडे ) खड़े हुए (ऋषभ ) आदि नाथ स्वामा (हि ) संपत्ति (तन) छोड (दोनो) दई (नियल) नहीं हिन्नने चलने वाला (अङ्ग) शरीर (मैक) पहार (मानी) तुन्य (भुजा) वाइ अर्थात् बाजू (अनन्त ) जिस का अन्त न हो (जन्तु ) जीव (जग) संसार ( चहला) कीचड़ ( करुणा) दया (चित ) मन ( समरथ ) सामर्थ बलवान् (प्रभु) खामो (बांद) भु जा (दोरघ) लम्बी सरला टीका थी आदि नाय स्वामी अपनी संपत्ति राज धन आदि को छोड कायोत्सर्ग सु ट्रा धारन कर पन में जा खड़े हुए आपका अचल शरीर मानों पहार है के सा पहार निम ने दोनों भुजा कोड लई हो कवि भूधर दास जी में खामी के प्रवल अरोर दोनों हाथ लटकते हुए को उस पहार से उपमा दई है जि स पहार ने दोनों भुजा छोड दई हो संसार रूप कीचड़ में अनन्त जीव फ से हुण् दुःखो देख कर सामर्थ स्वामी ने अपने मन में दया को उन जीवन को भव रूप कोचड़ से निकाल ने अर्थ कहीं अपने हाथ लवे कर है यह ভবা স্মাৰ पोमावती छंद करनों कछु ह न करते कारज, ताते पाणि प्र लम्व करे हैं। रहो न कछ पायन ते पोबो, . ताहो से पद नाहि टरे हैं। निरख चुके नैनन
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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