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________________ भूधरजनशतको मौन ) पण्डित ।। सरलार्थ टीका भोर मत वाले लोग मिथ्या मतरूप मदिरासौं पेट भरे हुये हैं सभी को मस्त जानों परन्तु जिनमतमें मस्ती नहीं है १ मत मानरूप पहाड़ पर पढकर समारमें बडे भये हैं सारे लोकको तुच्छ देखेंहैं नीचे क्यों नहीं उत्तरते सारे मतवाले चामके नेत्रोंसे देखकर नबेड़ा करें हैं और जैनमत वाले ज्ञान के नवोंसे देखें हैं इतनीही फेरहै ३ जैसे चतुर बजाज दी कपड़ोंको अपने पास रखकर एक दूसरे को परखै है तैसे अमीन पुरुष मत को मतसे परख पावै है ४ । दोहा छन्द • दोबपक्षजिनमतबिध; निश्चैअरव्योहार । तिनपिनल है न । हंसयह शिवसरबरकोपार ।। १०१ सौम सौभै सोझहो; तौनलोंकेतिहु काल । जिनमतको उपकारसभा मतभ्रम करहुदयाल ॥ १०२ ।। महिमानिनबरबचनकौ' नहींबच नवजहोय । भुवबलसौं सागर अगम; तिरैम तारैकोय ॥ १०३ ॥ अपने अपनेपन्थको' पोखैसकलजहान । तैसेयह मतपोखना' मत समझे मतवान ।। १०४ ॥ इस असार संसारमैं, औरनसरणउपाय । जम्ममन्म. हूनो हमैं लिन बरधर्मसहाय ॥ १०५॥ . शब्दार्थ टीका
SR No.010174
Book TitleBhudhar Jain Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi
PublisherBhudhardas Kavi
Publication Year
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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