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________________ ५० भिपकम-सिद्धि होती है । अथवा विशिष्ट लक्षण रोहिणी के उदय हो जाने के अनन्तर विशिष्ट नक्षत्र कृत्तिका का उदय होना । यहाँ पर मेघ एव रोहिणी का उदय वा एव कृत्तिकोदय के पूर्वस्प मे आते है । सामान्य पूर्वरूप-यह पूर्वरूप दो प्रकार का होता है १ मामान्य २ विशिष्ट । दोषदृष्य-सयोग से जव विकारोत्पत्ति होती है तो उस समय जिन साधारण लक्षणो के द्वारा ज्वर आदि व्याधि-मात्र के भविष्य मे होने का जो सामान्य ज्ञान होता है उसको सामान्य पूर्वरूप कहते है। इन लक्षणो के द्वारा भावी व्याधि का ही ज्ञान हो सकता है उसके वातादि दोपजन्य भेदो का नहीं, इसीलिए कथन है 'पूर्वरूप नाम येन भाविव्याधिविशेपो लक्ष्यते न तु दोपविशेप.।' श्रमोऽरतिविवर्णत्वं वैरस्यं नयनलवः । इच्छाद्वषो मुहुश्चापि शीतवातातपादिपु ।। जृम्भाजमर्दो गुरुता रोमहर्षोऽरुचिस्तमः । अप्रहर्षश्च शीतञ्च भवत्युत्पस्यति ज्वरे ॥ इन लक्षणो से ज्वर मात्र के होने का ही जान सभव रहता है, किन्तु यह जान नही हो सकता कि ज्वर वात-प्रधान होगा या पित्त-प्रधान । इसकी पुष्टि मे तत्रान्तरो के वचन भी प्रमाण है व्याधे॥तिर्वभूपा च पूर्वरूपेण लक्ष्यते। भावः किमात्मकत्वं च लक्ष्यते लक्षणेन हि ।। अथवा व्याधि की जाति या उसका भविष्य में होना सामान्य पूर्वत्प के द्वारा जाना जाता है, परन्तु उसकी दोपोल्वणता का विस्तार से ज्ञान तो लक्षणो के द्वारा हो होता है । वाग्भट ने स्पष्ट लिखा है 'दोपविगेप से अनधिष्ठित' अर्थात् दोष विशेप के ज्ञान से रहित भावि व्याधि जिस लक्षण समूह से प्रतीत हो उसे सामान्य पूर्वरूप कहते है । विशिष्ट पूर्वरूप-पूर्वरूपो मे कुछ रोगो मे वातादि दोपो से उत्पन्न होने वाले अव्यक्त लक्षण भी पैदा होते है-इन्हे विशिष्ट पूर्वरूप की मजा है, इन रोगो मे सामान्य पूर्वरूप नहीं होते। इन अव्यक्त लक्षणो से बड़े रोगो मे विशेपत उर क्षत की वातजन्यता या पित्तजन्यता का स्पष्ट बोध हो जाता है । अत इन्हे विशिष्ट पूर्वरुप कहते है । विशिष्ट पूर्वरूप को स्वीकार करते हुए उसका प्रतिपादन सुश्रुत ने लिखा है-भावी वातज ज्वर मे अधिक जॅभाई का आना, पित्त ज्वर मे नेत्रो मे जलन का होना तथा कफज ज्वरो मे अन्न के प्रति विशेष द्वेष होना पाया जाता है ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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