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________________ द्वितीय अध्याय सचय से लेकर स्वानस्श्रय तक की अवस्था को पूर्वरूपो के भीतर ही समाविष्ट माना जाता है। २ चरक ने पूर्वरूप मे विशेपत. राजयक्ष्मा के पूर्वरूप मे कुछ ऐसे अदृष्टजन्य अशुभ लक्षणों का भी समावेश पूर्वरूप मे किया है जिनमे दोप' का कोई भो कर्तुत्व नहीं है। यया रोगी के अन्नपान मे तृण, केश, घुन तथा मक्षिका आदि का गिरना। __ यक्ष्मिणां घुणकेशाना तृणाना पतनानि च। । प्रायोऽन्नपाने केशाना नखाना चातिवर्धनम् ॥ अब ये लक्षण अदृष्टजन्य भले ही हो, परन्तु दोपकृत नहीं है। अस्तु, दोपकृत लक्षणो को ही केवल पूर्वरूप मे नही लिया जा सकता क्योकि लक्षण अव्याप्ति दोप से युक्त हो जावेगा। फलत पूर्वरूप का ऐसा लक्षण बनाना चाहिए जो व्याप्ति एव अतिव्याप्ति दोष से रहित हो तथा जिसमे अदृष्टज तथा दोपज सब प्रकार के लक्षणो का समावेश हो जावे । एतदर्थ परम निषणात वाग्भटाचार्यकृत लक्षण अधिक उत्तम प्रतीत होता है, जिसमे उन्होने बतलाया है "दोपविशेष के ज्ञान के विना ही केवल उत्पद्यमान रोग जिन लक्षणो से जाना जा सके उन लक्षणो को सामान्यतया पूर्वरूप कहते है।" इसी भाव का द्योतन करते हुए अन्य परिभाषायें भी पूर्वरूप की पाई जाती हैं। चरक ने लक्षण किया है व्याधि के उत्पत्ति के पूर्व के लक्षण पूर्वरूप कहलाते है। यह पूर्वरूप की दूसरी व्याख्या है जिसमे अदृष्ट तथा दोपकर्तृक सभी लक्षणो का समावेश इस परिभाषा मे हो जाता है। ' ____ अब यहाँ पुन एक शका उत्पन्न होती है कि यदि दोषो की ही कारणता दी जाय और अदृष्ट लक्षणो को भी दोपजन्य मान लें तब तो प्रथम परिभाषा से ही काम चल जावेगा और दूसरी परिभाषा करने की आवश्यकता नही पडेगी? इसका उत्तर यह है कि तृण-केश-घुण-मक्षिका का भोजन मे गिरना प्रभृति क्रियाओ को दोषजन्य मानना ठीक नहीं है क्योकि उनका दोषो के साथ कोई भी सम्बन्ध नहीं है । अगर ऐसा माना जावे तो कारण कार्य सिद्धान्त मे अनवस्था आ जावेगी। सभी वस्तु सवका कारण बन जावेगी, कार्यकारणभाव की सम्पूर्ण व्यवस्था नष्ट हो जावेगी। अस्तु, चरकोक्त पूर्वरूपो का अदृष्ट कारणजन्य (आगन्तुक ) और दोपो से अनधिष्ठित मानना ही उचित है। अस्तु, नि?ष्ट लक्षण "भाविव्याधिवोधकमेव लिङ्ग पूर्वरूपम्' अर्थात् "भावी व्याधि के लिङ्ग को ही पूर्वरूप कहते है" ऐसा बनाना श्रेयस्कर है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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