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________________ बचने की प्रतिक्रिया ( Contact Irritability )। यह चेतना या संवेदन वृक्षों की अपेक्षा पशुओं मे, पशुओं की अपेक्षा क्रमश मनुष्यों में अधिकाधिक पाया जाता है। उच्च मस्तिष्क क्रिया, सनोभाव, चिन्तन और विचार आदि भी इसी गुण के द्योतक है। शाश्वत-यह आयु शाश्वत है अर्थात् मनुष्यकृत नहीं है अर्थात् अनादि है। जिस तन्त्र में इसके सम्बन्ध से विचार किया जाता है वह तन्त्र भी फलस्वरूप अनादि और शाश्वत है। आयु की परम्परा, बुद्धि की परम्परा, सुखदुख, द्रव्यों के गुण, गुरु-लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रुक्ष तथा सामान्य और विशेप के द्वारा वृद्धि तथा हास का होना प्रभृति वाते भी अनादि और शाश्वत है-अर्थात् अनादि काल से है और सदा रहनेवाली है। . आयुर्वेद मे जितने पदाथी (भावों) की व्याख्या आती है, वे कभी नही रहे हो और उनका नये सिरे से प्रवेश कराया गया हो ऐसा नहीं है क्योंकि स्वभाव से ही वे नित्य और शाश्वत है। आयुर्वेद में किये गये या बनाये गये लक्षण भी शाश्वत है। जैसे अग्नि का उष्ण होना, जल मे द्रवत्व का पाया जाना प्राकृतिक या रवाभाविक है। वह मनुप्यकृत नही अकृतक है। भारी चीजों के सेवन से भारी चीजे बढेगी-हल्की चीजे कम होंगी यह पदाथो के स्वभाव से नित्य है। __ अतएव आयु के सम्बन्ध मे ज्ञान कराने वाला यह शास्त्र चिरन्तन और शाश्वत है। इसका आदि और अन्त नहीं है। अनादि काल से आ रहा है और अनन्त काल तक चलेगा। इसका आदि अव्यक्त है-अन्त अव्यक्त है, केवल मध्य व्यक्त है। अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत | ___ अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना । (गीता अ० २) सोयमायुर्वेद' शाश्वतो निर्दिश्यते, अनादित्वात् , स्वभावसंसिद्धलक्षणत्वात् , भावस्वभावनित्यत्वाच्च । (चर० सू० ३०)। आयुर्वेद का सामान्य स्वरूप-वेट और आयु शब्दों की पृथक्-पृथक् व्याख्या करने के बाद समूह में अर्थ करना अभिलषित है। क्योंकि आयुर्वेद पदवाच्य पद में दो ही शब्द है और मूल अभिप्राय भी इसी पद की व्याख्या मे निहित है। अतएव आयुर्वेद-पद की शास्त्रीय निरुक्ति की जा रही है. आयु का ज्ञान कगने वाले शास्त्र को आयुर्वेद कहते है। इसके पर्यायकथन के रूप मे कई शब्दों का व्यवहार किया जा सकता है जैसे आयु-शाखा, आयु-विद्या, आयुसूत्र, आयु-ज्ञान, आयु-शास्त्र, आयु-लक्षण तथा आयु-तन्त्र । आयु के स्वरूप की व्याख्या ऊपर में हो चुकी है । अतएव फलितार्थ होगा जिस
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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