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________________ ६६४ भिषकर्म-सिद्धि - मर्ता की होती है। इसका सेवन वालगोप तथा राजयक्ष्मा के रोगियों के रोगों मे उत्तम लाभप्रद पाया गया है। मोपधि का लम्बे समय तक सेवन कराने की मावश्यकता पड़ती है। निरामिष भोजी व्यक्तियो में बल और भार बढाने के लिये यह एक उत्तम नोपवि है। अश्वगधा के मूल के चूर्ण का ही प्रयोग करना चाहिये । जीत ऋतु मे एक मास तक दूध के साथ सेवन करने से वृद्ध भी युवक के समान कार्यक्षम हो जाता है । चूर्ण को घृत मौर मधु से चाटकर ऊपर से दूध पीना चाहिए। तिल रसायन-काली तिल, आंवले का फल और भृङ्गराज सम्पूर्ण । इन तीनो द्रव्यो का चूर्ण बनाकर ६ मागे से १ तोले की मात्रा में रसायन विधि से जो मनुष्य सेवन करता है वह कृष्णकेग, निर्मलेन्द्रिय और व्याधियो से रहित होकर एक मौ वर्ष की आयु प्राप्त करता है। प्रतिदिन काली तिल को २ तोला की मात्रा में गीतल जल से खाने पर शरीर पुष्ट होता है और दात जीवन पर्यन्त दृढ रहते है। नागवला रसायन-गरद् ऋतु के प्रारम्भ मे नागवला के मूल को पुष्य नक्षत्र में उसाडे । इस जट में से एक कप चूर्ण करके दूध के साथ पिये। अथवा मधु और घृत के माथ चाटे । बिना अन्न साये केवल दूब पर ही रहे । इस प्रकार एक वर्ष तक प्रयोग करने पर सौ वर्ष तक बलवान होकर जीता है। . पलाशबीज रसायन-पलागवीज, मावला और तिल (काली)। सम मात्रा में बना चूर्ण । मात्रा ३ से ६ मागे । रात में सोने के पूर्व घी और चीनी के अनुपान में सेवन । इसके सेवन से मनुष्य के केश नहीं पकते, बल बढता है और मास दो-मास के उपयोग से वह बुद्धिमान और मेवावान होता है। पुनर्नवा रसायन-नवीन पुनर्नवा को दूध में पीसकर पन्द्रह दिन, दो मान भयवा छ. मास या एक वर्ष तक सेवन करने से शरीर पुन नया होता है। पुनर्नवा की मात्रा २ तोला ।८ । १ शिशिरे चाश्वगन्धायाः कन्दचूर्ण पयोन्वितम् । मासमत्ति समध्वाज्य म वृद्धोऽपि युवा भवेत् ।। (गजमार्तण्ड) २ धात्रीतिलान् मनरजोविमिधान ये भक्षयेयुर्मनुजा क्रमेण । ते कृष्णरेगा विमलेन्द्रियारच निधियो वर्षगतं भवेयुः ।। ३ दिनेदिने कृष्णतिलप्रकुञ्च समश्नतां गीतजलानुपानम् । पोप. गरीरस्य भवत्यनत्पो दृढीभवन्त्यामरणं च दन्ता ॥ (वा. रसा.) ४. पुनर्नवल्याईपलं नवम्य पिष्टं पिवेद्यः पयमार्यमासम् । मासहयं तटिगुण ममा बा जीर्णोऽपि भूय स पुनर्नवः स्यात् ।। (यो. र.) -
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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