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________________ भिषकर्म-सिद्धि इन प्रकार इन्द्र ने बायुर्वेद के अमृत स्वरूप इन रसायन ओोपधियो का तथा दिव्य औषधियों का परिचय ऋषि लोगो को कराया। उन्होने यह भी कहा कि हिमालय पर्वत में पैदा होने वाली ये दिव्योपधियाँ सम्पूर्ण वीर्ययुक्त हो गयी हैं और इनके उपयोग का यही उपयुक्त समय है, इनका मचय भी अभी करना चाहिए। इन ओषधियों को सिद्ध औषधियाँ या इन्द्रोक्त रसायन कहते है। जैसे ऐन्द्री, ब्राह्मी, पयस्था ( क्षीर काकोली ), क्षीर पुष्पी (ाल पुष्पी या विष्णुक्रान्ता ), श्रावणी ( मुण्डी ), महाश्रावणी ( मुण्डो भेट ), शतावरी ( शतावर ), विदारीकन्द, जीवन्ती, पुनर्नवा, नागवला, स्थिरा ( शालपर्णी ), वचा, छत्रा, अतित्रा, मैदा, महामेदा, अन्य जीवनीय गणको औपवियाँ जैसे जीवक, ऋपमक, मुद्गपर्णी, मापपर्णी, मधूयष्ठी । इनके छ मास के उपयोग मे आयु की परम वृद्धि होती है, व्यक्ति सदा युवा बना रहता है, निरोग रहता है, वर्ण और कान्ति की वृद्धि होती है, मस्तिष्क और मेवा की शक्ति प्रखर होती है, वल की वृद्धि होती है तथा अन्य भी इच्छित कामनाओं की पूर्ति करने में ये सिद्ध है | इन औषधियों के अतिरिक्त अन्य भी कई सिद्ध रसायनो का ज्ञान ऋपियों को प्राप्त हुआ । यथा ब्रह्म सुवर्चला नामक पवि जिसका छोर मुत्र के रंग का होता है एवं पत्र पुष्कर सदृश होते हैं | आदित्य पर्णी नामक ओपथि जिसको सूर्यकान्ता भी कहते है इनका भी वीर सुवर्ण वर्ण का और पुण्य सूर्य मण्डल के आकार का होता है | नागे नामक जोपवि जिसे अश्ववला भी कहते है जिसके पिप्पली ( धन्वज ) महा पत्र होते हैं । काष्टगोवा नामक ओपवि जो गोह (गोवा) के बाकार की तथा सर्पा नामक ओपघि सर्प के आकार की होती है | बोर प्रत्येक गाँठ पर इसमें मोम (चन्द्र ) मोम नामक पवियों का राजा जिसमें पन्द्रह गांठ एक पत्तो लगी हुई कुल पन्द्रह पत्तियों वाली ओपथि है, के समान वृद्धि और होम पाया जाता है । अर्थात् पूर्णिमा के दिन यह अवधि पन्द्रह पत्तों ने पूर्ण रहती है । कृष्ण पक्ष में तिथि के क्रम से पत्र गिरते है बोर अमावास्या के दिन यह पूर्णतया निष्पत्र हो जाती है । पद्मा नामक लोपधि पद्मावार, लाल कमल के आकार की एवं पद्म ( लाल कमल ) के गन्ध की होती है | अजा नामक योनि को भी कहते है । नोला नामक बोपवि नील वर्ण के फूलवाली, नीले रज के दूधवाली और लना के प्रतान के रूप में पाई जाती है । इन आठ औधियो ( नौवीं औपधिराज सोम ) मे से जो-जो भी सोपवि प्राप्त हो उन-उन औरवियों के स्वरस को पेट भर पीकर घा, तेल वादि स्नेह मे भावित ताजी ( गोली ) पलान की बनाई हुई होणी ( Tub ) में जिस पर पानी ताजी लाडी का ढकना भी हो, नग्न होकर लेट जाय । वह ६८४
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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