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________________ चतुर्थ अखण्ड : तैतालीसवाँ अध्याय ६७६ बहुत से धातवीय या खनिज पदार्थों का उपयोग रसायन रूप मे अर्थात् नैरुज्य सम्पादन, जरावस्थाजन्य विकारो को दूर करना तथा दीर्घायु की प्राप्ति के निमित्त पाया जाता है । इनमे शिलाजीत, लोह, तथा कज्जली घटित कुछ योग अधिक प्रसिद्ध है | अध्याय के अन्त मे ऐसे कुछ योगो का उल्लेख किया जा रहा है । १ भेपजाभेपजः –— चरक ने लिखा है कि भेपज के पर्याय रूप में चिकित्सित व्याधिहर, पथ्य, साधन, औषध, प्रायश्चित्त, प्रशमन, प्रकृति स्थापन तथा हित शब्द का प्रयोग होता है । इन सभी शब्दो का एक ही अर्थ है चिकित्सा कार्य मे व्यवहृत होने वाले औपच या भेषज दो प्रकार के होते हैं । १. स्वस्थ को अधिक ऊर्जस्कर या अधिक प्रशरत बनाने वाले तथा २. रोगी के रोग दूर करने वाले । ऊर्जस्कर या प्रशस्तकर भेषज से तात्पर्य यह है कि ऐसी औषध जो १ जराव्याधि-मृत्यु प्रभृति स्वाभाविक ( Natural decaying ) व्याधियो को दूर कर सके अथवा २ अहर्ष, मैथुनको अशक्ति एव अशुक्रता को दूर कर मनुष्य को अधिक हर्षयुक्त, मैथुनक्षम एव अधिक वीर्ययुक्त बना सके। इनमे प्रथम वर्ग को रसायन औषध और दूसरे वर्ग को वाजीकरण औषध कहते है । कुछ ऐसी भी औषधियाँ हैं जो केवल ज्वर, अतिसार, रक्त पित्त आदि की चिकित्सा मे अर्थात् रोगी के रोग के दूर करने मे ही उपयुक्त होती हैं । अब यहाँ पुन शका होती है कि क्या इन भेषजो का यह वर्गीकरण ठीक है ? क्योकि बहुत से भेपज जो वृष्य या वाजीकरण बतलाए गए है वे रसायन रूप मे भी व्यवहृत होते है अथवा वहुत से रसायन रूप मे कथित ओषध रोग की चिकित्सा मे भी व्यवहृत होते हैं । उदाहरण के लिए क्षतक्षीण की चिकित्सा मे व्यवहृत सर्पिगुड आदि बहुत से योग रसायन एव वृष्य भी होते है । पाण्डु रोगाविकार मे चिकित्मा मे व्यवहृत होने वाला योगराज रसायन भी बतलाया गया है और कास रोग मे व्यवहृत होनेवाला अगस्त्य हरीतकी योग रसायन रूप मे भी कथित हुआ है । इसके अतिरिक्त रसायन तथा वाजीकरणाधिकार के बहुत से भेपज चिकित्सा मे रोग प्रशमन मे भी प्रयुक्त होते हैं । फलत इस तरह का भेषज का वर्गीकरण अनुप १. चिकित्सित व्याधिहर पथ्यं साधनमौषधम् । प्रायश्चित्तप्रशमन प्रकृतिस्थापनं हितम् । विद्याद् भेषजनामानि भेषज द्विविध च तत् । स्वस्थस्योर्जस्कर किंचित् किंचिदार्त्तय रोगनुत् ।। स्वस्थस्योर्जस्कर यत्तु तद् वृष्य तद् रसायनम् ॥ ( च० चि० १. )
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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