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________________ ६४० भिपकर्म-सिद्धि श्वित्रकुष्ट मे अन्तः प्रयोग की औषध / १ शुद्ध गन्धक या गन्धक रसायन ४ रत्ती-१ मागा तक घृत और गकरा के साथ ऊपर से आंवला और खैर का काटा पिलावे। सुबह और शाम दिन मे दो वार । अथवा केवल धात्री मीर खदिर ( आँवले और कत्ये ) का काढ़ा में वाकुची वीज १ माशा मिलाकर पिलाना भो श्वित्र में हितकर होता है । २ वाकुची बीज का खाने में उपयोग-प्रतिदिन १-२ मागा चूर्ण का जल, दूध या गोघृत के साथ लगातार एक पक्ष या मास तक सेवन करना । दूसरे वर्षमान वाकुची सेवन का ऊपर में उल्लेख हो चुका है। दोनो में जो रोगी को अनुकूल प्रतीत हो उस विधि का प्रयोग करे। इसके प्रयोगकाल में घृत का मेवन रोगी को कराना चाहिये और भोजन में सात्विक माहार देना चाहिये। २. विभीतक और काष्टोदुम्बर की छाल का काढा कर उसमें बाकुची बोज का प्रक्षेप करके सेवन । श्वेतारिरस-शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, हरड़, वहेरा, आँवला, भृङ्गराज, वाकुत्री, शुद्ध भल्लातक, काली तिल, निम्ब बीज का चूर्ण १-१ तोले । भृगराज स्वरम की भावना देकर ४ रत्ती की गोलियां बना ले। मात्रा १-२ गोली दिन में दो बार । अनुपान ६ माशा घृत एवं ८ माशा मधु । ४. पंचनिम्ब चूर्ण प्रभृति अन्य भी कुष्टाधिकार के योगों का सेवन रकगोवन के निमित्त श्वित्र में किया जा सकता है। उपसंहार-कुष्ट एक दीर्घ काल तक चलनेवाला रोग है। इसमें चिकित्सा लम्बे समय तक ६ मास, एक वर्प, दो वर्ष या अधिक अवधि तक करनी होती है। लम्बी नववि तक पथ्य एव ओपधि सेवन करते हुए रोगी घबडा जाता है। कुष्ठ के रोगियो मे एक विचित्रता और पाई जाती है कि उनके लिये जो पथ्य कर आहार-विहार आदि का उपदेश वैद्य करता है-उसके विपरीत रोगी ठिपाकर आचरण करना चाहता है। अस्तु, दृढता-पूर्वक उपचार करने की आवश्यकता रहती है। इसके अतिरिक्त रोगी को सात्विक आहार, उदार विचार, परोपकार की प्रवृत्ति तथा देवोपासना को भी मावश्यकता रहती है। कुष्ठाधिकार में वर्णित निमित्मा का सम्यक्तया अनुपालन करने से कुष्ठ रोग में लाम निश्चित होता है । विपादिका कुष्ट-इमको पाददारी (Rhagades) भी कहते हैं । इस रोग में वायु की अधिकता या सूक्षता से हाथ एवं पर या केवल पर फट जाता है। १. धात्रीमदिरयो. क्वायं पीत्वा च मधुमयुतम् । गंलकुन्देन्दुधवलं जयेच्छिवयं न मंगय ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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