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________________ ६३४ भिषक्कम-सिद्धि नोपधि का प्रयोग करे, चावल के भात और दूध का पथ्य रखे। इस प्रयोग से गलत्कुष्ठ ऐसे कोढी, जिनके माँख, कान, नाक और अंगुलि गल रहे हो, उनमे भी लाभ होता है। सर्वेश्वर रस-शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गंधक ४ भाग । एक प्रहर तक मर्दन करके कज्जली करे । फिर उसमे ताम्र भस्म, लौह भस्म, अभ्रभस्म, शुद्धहिंगुल ४-४ तोले, स्वर्ण-भस्म, रजत भस्म २॥२॥ तोले, हीरक भस्म १ माशा, शुद्ध हरताल १० तोले । जम्वीरी नीवू, धतूर की पत्तो, थूहर की पत्ती, अर्कपत्र प्रत्येक के स्वरस तथा शुद्ध कुचिला और कनेर के क्वाथ से पृथक्-पृथक् एकएक दिन तक खरल करे। इस तरह एक सप्ताह तक घोटने के बाद गोली वनाकर चौपहे वस्त्र मे आवेष्टित करके कपड़मिट्टी कर वालुका यत्र मे रख मृदु अग्नि से तीन दिनो तक पाक करे । पश्चात् शीतल होने पर खूब महीन खरल करके उसमे शुद्ध वत्मनाभ विप का चूर्ण ५ तोला तथा पिप्पली चूर्ण १० तोला मिलाकर महीन पीस कर शीशी में भर दे । मात्रा २ रत्ती । अनुपान वाकची और देवदारु चूर्ण १-१॥ माशे और एरण्ड तेल १ तोला । इसके प्रयोग से सुप्त और मण्डल कुष्ठ में लाभ होता है। आरोग्यवर्धिनी-शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गधक १ भाग, लौह भस्म १ भाग, अभ्र भस्म १ भाग, ताम्र भस्म १ भाग, बड़ी हरड़ का दल २ भाग, यांवला २ भाग, बहेडा २ भाग, शिलाजीत ३ भाग, शुद्ध गुग्गुलु ४ भाग, चित्रक मूल की छाल ४ भाग और कुटकी २२ भाग ले । प्रथम पारद और गधक को कज्जली करके उसमें शेप द्रव्यो का कपडछान चूर्ण मिलावे । पीछे गुग्गुलु को नोन की ताजी पत्ती के स्वरस में ६ घटा तक भिगो कर मसलकर कपडे से छान कर उसमे अन्य द्रव्यो को मिला ले। फिर नीम की ताजी पत्ती के रस में तीन दिनो तक मर्दन करके तीन-तीन रत्ती की गोलियां बना ले।। मात्रा १ मे ३ गोली। अनुपान-रोगानुमार जल, दूध, पुनर्नवा कपाय, दशमूल कपाय अथवा मुघल फपाय से। गुण तथा उपयोग-बहुत प्रकार के रोगो में इस योग का व्यवहार होता है । जैसे, जोर्ण विवध ( पुरानी कब्ज), यकृत् दोप, उदर, यकृत्-प्लीहा-वृद्धि, सर्वांग गोफ, जलोदर, मेदो रोग आदि । यह उत्तम रक्तशोधक औपधि है । अस्तु, कुष्ट रोग में या त्यगत रोगो में इसका व्यवहार होता है । हृद्य होने से हृद्विकारो में भी लाभप्रद होती है । यह एक मूल औपधि के रूप में सर्वाग शोफ एव जलोदर में भी उपकारक है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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