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________________ ६२४ भिपक्कम-सिद्धि ममीप कार्य करना भी अनुकूल नहीं पड़ता । अस्तु, ऐसे व्यवसायो को या दिन फा मौना, भाग का तापना भी रोगी को छोड देना चाहिये ।। पथ्य-कुष्ठ रोगियो में घृत (विप करके गोघृत) का उपयोग वडा हो उत्तम पाया गया है । पुगने अन्नो मे जो, गेहूँ, चावल, मूग, अरहर, चना, मसूर का सेवन अनुकूल पड़ता है। चना गेहूँ की रोटी और घी का सेवन पथ्य रूप में उत्तम रहता है । गहद, जागल पशु-पक्षियो के माम, आपाढ मे पैदा होने वाले फल जमे ककडी, खरबूजे, तरवूज, बेंत की कोपल, परवल, तरोई, मकोय, नीम की पत्ती, लहसुन आदि का उपयोग ठोक रहता है । हुरहुर, पुनर्नवा, मेढासिंगी, चक्रमर्द की पत्ती, ताल के पके फल, जायफल, नाग केमर, कंगर पथ्य होते है । तलो मे-तिल-मरसो-नीम-हिंगोट-सरल-देवदारु-सीमम-अगुरु-बदन तुवरक (चालमोगरा) आदि कुष्ठ में हित रहते हैं। गोमूत्र तथा गवा-जंट-घोडा-या भंस का मूत्र तथा तिक्त पदार्थों का सेवन पथ्य है । इन पथ्यापथ्यो का विचार सभी प्रकार के कुष्ठ रोगो में विशेषत महाकुण्ठो के सम्बन्ध में करना चाहिये । पंचकर्म या संशोधन-कुष्ठ रोग में संशोधन को चिकित्सा एक आवय्यक एवं उत्तम उपक्रम माना गया है। इसके द्वारा दोपो के निहरण हो जाने के अनन्तर पथ्य एवं ओपधि का उपयोग करते हुए रोगी को रोगमुक्त किया ना नकता है । अस्तु, एक एक पक्ष (पन्द्रह-पन्द्रह दिनो) के अन्तर मे रोगी का वमन कराना, एक-एक माम के अन्तर से विरेचन देना, प्रनि तीसरे-तोमरे महीने पर गिरोरेचन या नस्त्र कर्म कराना तथा छठे-छठे महीने पर रक्त विनावण ( गिरावेध के द्वारा रक्त का निकालना ) कुष्ठ रोग में हितकर रहता है-ऐमा आचार्यों का मत है। इन कर्मों का सामान्यतया विधान हाते हुए भी कुष्ठ मे वाताधिक्य होने पर अर्थात् वातोल्वण कुष्ठ में घृतपान, कफोल्वण कुष्ठ मे वमन १ पापानि कर्माणि कृतघ्नभावं निन्दा गुरुणा गुरुधर्षणञ्च । विरुद्धपानागनमह्नि निद्रा चण्डाशुतापं विपमागनञ्च ॥ स्वेद रत वेगनिरोवमिक्षु व्यायाममम्लानि तिलाश्च मापान् । द्रवान्नगुर्वन्ननवान्नमुक्त विदाहि विष्टमि च मूलकानि ॥ सह्याद्रिविध्याद्रिसमुद्भवाना तरङ्गिणीनामुदकानि चापि । मानूपमामं दधिदुग्धमद्य गुड च कुष्ठामयिनस्त्यजेयु. । अन्नपानं हितं कुप्ठे न त्वम्ललवणोपणम् । दधिदुग्धगुडानूपतिलमापास्त्यजेत्तराम् ।। (यो, र.) २. पळे मासे शिरामोक्ष प्रतिमाम विरेचनम् । प्रतिपदं च वमनं कुष्ठे लेपं त्र्यहाच्चरेत् ॥ (यो. र.)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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