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________________ ६० भिपकम-सिद्धि मोदक पर मा जाना चाहिये । इस प्रकार एक पक्ष अथवा एक मास तक इस योग के सेवन करने से गोथ, प्रतिश्याय, गले के रोग, श्वास, कास, अरुचि, पीनल, जीर्णज्वर, अर्ग, मंग्रहणी तथा अन्य कफ एव वायु के रोग गान्त होते है। विल्व पत्र स्वरस-या निम्ब पत्रस्वरस-नीम की पत्तो का रस या वेल की पत्ती का रस १ तोला उममें काली मिर्च का चूर्ण १ मागा मिला कर सेवन करने से गोथ, विवव, अर्श एव कामला में लाभ होता है ।२ देवदारु-केवल देवदारु से सिद्ध क्षोर का सेवन अयवा देवदारु और त्रिकटु के योग से पकाया दूध अथवा देवदार, गुग्गुलु, सोठ, चित्रक की हाल और पुनर्नवा के योग से पकाया या शृत दूध शोथशामक होता है । भूनिम्व-चिरायता और शुण्ठी का चूण प्रत्येक २ माशे भर लेकर खाकर ऊपर मे पुनर्नवा का क्वाथ पीने से सर्दाङ्ग गाफ के रोग में उत्तम लाभ होता है। स्थलपद्म-केवल स्थलपद्म के कल्क को दूध के माय सेवन करने से गोय रोग मे लाभ होता है । स्थलपद्म से निम्नलिखित द्रव्यो मे से किसी एक का ग्रहण किया जा सकता है-जैसे- सेवती, गुलदाउदी, नेपाली, वकुल या कदम्ब का फूल । स्थलपद्म से 'मोलट कम्बल' का भी ग्रहण होता है । प्रयोग करके देखना चाहिए । स्थलपद्म घृत का भी योग भपज्य रत्नावली में पठित है । कोकिलाक्ष-तालमखाना का उपयोग भी गोथ रोग मे उत्तम रहता है। इमका कपाय या पौदे को जलाकर उसकी राख बनाकर २ माशे की मात्रा मे गोमूत्र या दूध के साथ देना चाहिये । अपामाग-क्षारीय द्रव्य गोथ में उपयोगी होते है । फतल अपामार्ग स्वरस या क्ल्क का उपयोग भी शोथ में लाभप्रद रहता है। अपामार्ग के अतिरिक्त तालमखाना, मूली, निर्गुण्डी आदि का भी प्रयोग शोथ में होता है।। मण्डूर तथा लोह-मराडूर अथवा भस्म का उपयोग स्वतंत्रतया या किसी योग के रूप में करना शोथ रोग में लाभप्रद होता है। इसके कई योग बड़े उत्तम है जैसे-पुनर्नवामण्डूर, शोधारिमण्दूर, तारामण्डूर, रसाश्रमण्डूर, शोथारि लोह, विकटवादि लौह एव नवायस आदि । १ गुडाद्रकं वा गुडनागर वा गटाभया वा गुडपिप्पलो वा । भिवृद्वचा त्रिपलप्रमाण खादेन्नरः पक्षमथापि मासम् ।। घोचप्रतिश्यायगलास्यरोगान् मन्वासकासातचिपीनसादीन् । जीणज्वराोरहणीविकारान हन्यात्तथान्यान् कफवातरोगान् ॥ ( च द ) २ निम्बपनग्नं पातु (वित्वपत्ररसं पात) सोपण श्वयथी विजे । विट्मगे चैव दुर्नान्नि विदध्यात् कामलासु च ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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