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________________ भिपकर्म-सिद्धि अपतर्पण के लिये--अधिक जागरण, लघन ( उपवास), चिन्ता, श्रम, सायकिल, हाथी या छोडे की सवारी, धूप में चलना या काम करना, भ्रमण करना, उबटन लगाना, शरीर की मालिग करना, वमन एवं विरेचनादि शोधन कर्म करना उत्तम रहता है। भोजन में इन रोगियो को पुराना अन्न विशेपत. रुक्ष अन्न जैसे जौ, साँवा, कोदो, नीवार, कङ्ग धान्य तथा अन्य तृण धान्य या मुन्यन्न का सेवन करना चाहिये । दालो मे कुलथी, मूग, मसूर, चना, तुवरी, लाज ( खील ), मधु, मट्ठा ( मक्खन निकाला दूध या मट्ठा ), मासव, अरिष्ट, सुरा, सर्पप तैल, पत्र शाक ( पत्ती बाले शाक), वैगन का भत्ता, चिंगट मछली (छोटी जाति की मछली) प्रभृति कटु-तिक्त-कपाय रस वाले द्रव्य एव रूक्ष गुण भूयिष्ठ पदार्थों का सेवन रोगी को कराना चाहिये । " औपधियों में-त्रिफला, गुग्गुल, लोह के योग, गोमूत्र, विडङ्गादि कृमिघ्न द्रव्यो के योग, त्रिक्टु, शिलाजीत, पीने के लिये उष्ण किया जल, उष्ण जल से स्नान, जल का कम सेवन और भोजन के पूर्व जल का पीना उत्तम रहता है। लेखन वस्तियो का भी उपयोग करना चाहिये । अपथ्य-शीतल जल से स्नान, नवीन अन्न ( चावल, गेहूँ), सुखपूर्वक सदा गही और तकिये के सहारे बैठना, दूध, मलाई, रवडी, मावा या खाड-राव का खाना, अधिक स्निग्ध एव पौष्टिक आहार, मछली, मासादि का अधिक सेवन, दिन का सोना, भोजन के बाद का जल पीना इन कार्यों को मेदस्वी व्यक्तियो को समभाव मे माने के लिये अर्थात् नातिस्थूल नातिकृश बनने केलिये छोड देना चाहिये। भेपज-१ शहद १ तोला एव जल ४ तोला मिलाकर प्रात काल मे सेवन । २ चावल का गर्म मण्ड पीना।२ ३. दधि-मस्तु ( दही का पानी ), अथवा मथी हुई दधि का मक्खन निकाला छाछ तथा पचकोल भी कर्पक होता है। ४. अरणी की छाल का क्वाथ बनाकर उसमे शुद्ध शिलाजीत १ मागा मिलाकर पिलाना । ५. एक तोले भर वेर की पत्ती को काजी मे पीस कर सेवन करना। ६ एरएटपत्र को जलाकर उसका क्षार बनाकर २ माशा की मात्रा ४ रत्ती घृत भजित हीग मिलाकर गर्म जल में घोल कर सेवन । १ श्रमचिन्ताव्यवायाध्यक्षीद्रजागरणप्रिय । हन्त्यवश्यमतिस्थोल्य यवश्यामाकभोजन ।। अस्वप्नञ्च व्यवायच व्यायाम चिन्तनानि च । स्थौल्यमिच्छन् परित्यक्तु क्रमेणातिप्रवर्द्धयेत् ॥ २ प्रातमधुयत वारि मेवित स्थीत्यनागनम् । उष्णमन्नस्य मण्ड वा पिबन् कृशतनुर्भवेत् ।। ( भै र )
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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