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________________ भिपकर्म-सिद्धि प्राचीन ग्रंथो में स्वप्नदोप वा स्वाप्निक शुक्रक्षय नामक किसी रोग विशेप का उल्लेख नहीं पाया जाता है । इसके दो कारण हो सकते है-१ इसको कोई रोग या वैकारिक स्थिति ( Pathological condition ) न समझा गया होवत्कि एक स्वाभाविक क्रिया ( Physiological functions of Puberty in males ) माना गया, जिसमें किमी उपचार की आवश्यकता न ममजी गई हो । २ सभवन प्राचीन युग मे यह विकार होता ही कम होवे, फल स्वस्प आचार्यों को इसका स्वतत्र गेग के रूप में उल्लेख करने की या चिकित्सा वतलाने की आवश्यकता ही न प्रतीत हुई हो । दोनो पक्ष ही युक्तियुक्त है तथापि प्रथम पक्ष अधिक विनानमम्मत प्रतीत होता है। वास्तव में स्वप्न में वीर्य का क्षय होना कोई रोग नहीं है--प्रत्युत एक प्राकृतिक ब्रिया है-जो दो कारणो से उत्पन्न होती है-१. प्रजनन अगो के स्वाभाविक विकास २ तथा कामवासनावो की उत्तेजना तथा उसको मतृप्ति ( Dissatisfaction of the Sexual Hunger ) #1 TFF JAT वहुधा देखा जाता है कि स्वाप्निक शुक्रक्षय से ग्रस्त व्यक्तियो का वैवाहिक सम्बन्ध या गार्हस्थ्य स्थापित हो जाने पर निद्रा से वीय-क्षय होने का विकार स्वत. गान्त हो जाता है । इस कथन का तात्पर्य यह है कि एक सीमित मात्रा तक मान में १ से ४ दिनो तक स्वप्न में शुक्र-नय का होना कोई चिन्त्य विषय नही है, परन्तु, इससे अधिक होना कुछ मानसिक उत्तेजनावो का द्योतक होता है । इसके लिये कुछ सगामक योगो का देना आवश्यक हो जाता है । प्रतिपेध-१ स्वप्न-दोप-गब्द के शाब्दिक अर्थ का विचार करने में स्पष्ट हो जाता है स्वप्न का दोष । स्वप्न कहते है निद्रा को, अस्तु, निद्रा का दोप ही प्रधान हेतु शुक्रक्षय मे कारण बनता है। स्वाभाविक निद्रा में दो प्रकार की अवस्थायें पाई जाती है-१ पहलो अवस्था-स्वप्न--जिसमे निद्रा एवं जागरण का मिश्रण पाया जाता है दूसरे शब्दो में अप्रगाढ निद्रा इसे कहते है । २ दूसरी अवस्था सुपुटिन जिममें प्रगाढ (गाढी ) निद्रा रहती हैं। प्रथमावस्था में कई प्रकार के दिन में देखे गये विचार निद्रा में आते रहते है और उसके फलस्वम्प शुक्रक्षय भी हो जाया करता है। अस्तु, प्रगाढ निद्रा का प्रयत्न करना चाहिये । इसके लिये मस्तिष्क का मगमन एव मृदु निद्राकर औपधियो का उपयोग करने से पर्याप्त लाभ पहुँचता है। शुक्रक्षय की चिकित्मा में व्यवहृत होने वाले सभी योग शीतवीर्य एवं मस्तिष्क-तन्तुत्री के सगमन करने वाले हो तो उनका प्रयोग करते हुए व्यक्ति को लाभ पहुँचता है । साथ ही यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि व्यक्ति को सीमित समय तक चारपाई पर पडे
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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