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________________ ५५४ भिपकर्म-सिद्धि चंद्रकला रस-शुद्ध पारद, ताम्र भस्म, अभ्र भस्म प्रत्येक १ तोला, शुद्ध गधक २ तोला । प्रथम पारद और गंधक की कज्जली बनाकर शेप द्रव्यों को मिलाकर अच्छी प्रकार घोटले । फिर उसमे कुटकी, गिलोय का सत्त्व, पित्तपापडा, खश, माधवी लता का चूर्ण, अनन्तमूल, श्वेत चन्दन प्रत्येक का चूर्ण १ तोला भर मिलाले। पश्चात् नागरमोथा, मीठा अनार, दूर्वा, केवडे का फूल, सहदेवी, घृतकुमारी, पर्पट, रामशीतलिका, शतावरी इनका यथालाभ क्वाथ या स्वरस से पृथक्-पृथक् एक एक दिन तक यथाविधि भावित करके सुखाकर रख ले। इसको द्राक्षादि गण की औषधियो के वाथ - (द्राक्षा, सन्तरा, केला, ताडफलगिरी, जामुन एवं आम ) से भावित करके या द्राक्षा के काढे या अगूर के रस में ७ दिनो तक भावित करके औषधि का गोला बनाकर पत्तो में लपेट कर एक सप्ताह तक धान्यराशि में रख दे। धान्यराशि मे पाक हो जाने पर एक सप्ताह के पश्चात् औपधि को निकाले । पश्चात् गोलियां चने के वरावर को बनाकर छाया मे सुखाकर रखले । यह चन्द्रकला रस शरीर के दाह, चक्कर आना, मूर्छा, खासी से रक्त आना, रक्त का वमन, रक्तपित्त, रक्तप्रदर, रक्तार्श, जीर्णज्वर तथा मूत्रकृच्छ्र मे परम लाभप्रद होता है। यह परम पित्तशामक औषधि है । मात्रा १-२ गोली दिन में तोन वार, पेठे के काढे या रस के साथ । (वृहत निघद्ध रत्नाकर)। सुकुमारकुमारक घृत-पुनर्नवा की जड़ १ तोला लेकर २ द्रोण जल मे खोलाकर चतुर्थाशावशिष्ट क्वाथ बनावे एवं छानकर रखले। फिर दगमूल, शतावर, वला की जड, असगध, तणपचमल, गोखरू, विदारीकद, शालपर्णी, नागवलामूल, गिलोय और अतिवला प्रत्येक ४०-४० तोले लेकर दो द्रोण ( ३२ सेर) जल मे खोलाकर चतुर्थाशावशिष्ट क्वाथ बनाकर छान कर रखले । फिर गोघृत १२८ तोल तथा मधुयष्टी, अदरक, द्राक्षा, सैधव, छोटी पीपल ८-८ तोले, अजवायन १६ तोले, गुड १२० तोले, एरण्डतैल ६४ तोले का कल्क एवं दोनो क्वाथो को आग्न पर चढाकर यथाविधि पाक करे। यह सूकुमार प्रकृति के व्यक्तियो के लिय, राजा अथवा राजा के समान या थीमन्त मनुष्यो के लिये हितकर, बलकारक एवं शीतवीर्य रसायन औषधि है। अनेक रोगो में विशेषत मत्रकृच्छ्र और मूत्राधात में लाभप्रद रहता है।' मात्रा १ तोला गर्म दूध मे डाल कर दिन दो या तीन बार । (चक्रदत्त) __मूत्राघात प्रतिपेध-मूत्राघात की चिकित्सा मे दोपानुसार मूत्रकृच्छ् रोग की चिकित्सा में व्यवहृत होने वाली औपधि योगो का प्रयोग करना चाहिये तथा वस्ति, उत्तरवस्ति एव एरण्डतले से विरेचन देना चाहिये ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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