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________________ ५४६ भिषकर्म-सिद्धि (७) नारायण तेल का शरीर एवं शिर मे अम्बंग । (८) रेचन के लिये एरण्ड तैल 'शतपत्र्यादि चूर्ण' गुलकंद आदि का उप योग करे, शुद्धि के लिये वस्ति का उपयोग भी ठोक रहता है । सक्षेपत हृदय मे दो प्रकार के रोग होते है-१ हृदय का अंगसम्बन्धी विकार (organic disorders) २ क्रियासम्बन्धी विकार (Functional disorders) इनमे क्रियासम्बन्धी विकारो का शमन शीघ्र हो जाता है, परन्तु आङ्गिक विकारो का सुधार विलम्ब से होता है, क्वचित् नही भी होता है। हृद्रोग में रसायन एव वल्य दोनो का उपयोग श्रेष्ट रहता है। आँवले का सेवन, च्यवनप्राश का सेवन, अश्वगंध का सेवन-वातानुलोमक एवं मृदु रेचन की व्यवस्था भी ठीक रहती है। चेतस हृदय, मानस और मन ये गन्द पर्यायरूप मे व्यवहृत होते है । अस्तु, मन को प्रौढ बनाने के लिये तथा चित्त को प्रसन्न रखने के लिये उपाय करना चाह्येि । हृद्रोगो में प्रमुखतया हृच्छूल तथा व्यतिरिक्त अन्य लक्षण दो प्रकार के होते है। इन उभयविध लक्षणो के होने पर चिकित्सा मे उपयुक्त योगो से चिकित्सा करते हुए लाभ की संभावना रहती है। तथापि हृदय एक सर्वाधिक महत्त्व का मर्माङ्ग है। इसमे अभिघात या विकार का होना प्रायः घातक होता है। अस्तु, इम मङ्गि की सुरक्षा तथा तद्गत रोगो के प्रतिकारो में सदैव तत्परता रखनी चाहिए। आयुर्वेद के प्राचीन ग्रथो में हृदय की रचना-शारीर का वर्णन विस्तार से नहीं पाया जाता, तथापि इस अग मे होने वाले विकारो तथा चिकित्सा का वर्णन पश्चात्कालीन नथो मे पर्याप्त मिलता है । इन ग्रंथो के आधार पर चिकित्सा करते हुए सफलता भी मिलती है। क्योकि सूक्ष्म दृष्टि से विचार किया जावे तो वस्तुत हृदय मे आम तौर से मिलने वाली पांच प्रकार को व्याधियां दिखाई पड़ती है १ चेतना-विकारजन्य मानस रोग (Cardiac Nurosis)-इनमें चेतनास्थान हृदय तथा मन को प्रौढ वनाना चिकित्सा है। २. सहज हृद्रोग (Congenital Heart disease)-जन्मजात व्याधियो में किसी विशेप उपचार को आवश्यक्ता नहीं पड़ती है। रसायन औषधियो का सेवन, विश्राम का जीवन, कोप्ट को शुद्धि आदि, आहार-विहार एवं पथ्य के द्वारा ही उपचार पर्याप्त होता है। ३. उच्च रक्तनिपीडजन्य हृद्रोग (Hypertensive ), इनमें वायु की यधिकता होती है। अस्तु, वात रोग ( रक्तवात ) की चिकित्सा करने से हो रोगो में उपकार की आशा रहती है। ४ आमवातज हृद्रोग ( Rheumatic Heart Disease )-इसमें आम का पाचन, अग्निदीपन, एरण्ड तैल के
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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