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________________ ५४१ चतुथे खण्ड : बत्तीसवाँ अध्याय दाह, स्वेद और मूर्छा प्रभृति लक्षण विशेषतया मिलते है । त्रिदोषज हृद्रोग में मिश्रित लक्षण उपस्थित रहते है। कृमिज हृद्रोग मे कृमियो की आत्र मे उपस्थिति तथा तज्जन्य रक्ताल्पता होकर हृदय-प्रत्युगिरण (Regurgitation) का दोप आजाता है, जिससे श्रवण यत्र से हृत् प्रदेश पर एक विशेष प्रकार की मर्मर ध्वनि ( Haemic Marmur ) सुनाई पडती है।। हृद्रोग प्रतिषेध-हृद्रोग मे रोगी को विश्राम का कार्य करना चाहिये । अधिक परिश्रम, कार्य भार बद कर देना चाहिये। अधिक दौडना-धूपना, धूप मे कार्य करना भी रोग के प्रतिकूल पडता है, अस्तु, विश्राम का जीवन, ब्रह्मचर्य का पालन, स्त्रोसग प्रभृति काम-वासनावो से पृथक् हृद्रोगी को रखना चाहिये । क्रोध, रोप, चिन्ता आदि मानसिक उद्वेगो से भी रोगी को दूर रखने का ध्यान रखना चाहिये । अधिक वोलना, भापण-प्रवचन आदि भी रोगी को अनुकूल नही होता है। तैल, खट्टा तक्र ( मट्ठा ), काजो आदि अम्ल, गरिष्ठ अन्न का सेवन, अध्यशन ( अधिक मात्रा मे भोजन ), कपाय द्रव्यो का सेवन भी ठीक नही रहता है। अस्तु, इनका भी परित्याग करना चाहिये । वेगो का सधारण, नदीजल, दूपित जल, भेड का दूध, महुवेका उपयोग, पत्र शाक भी ठीक नही होते है। रोगी को खाने में जौ, गेहूँ, मूग, प्राना चावल, जागल पशु-पक्षियो के मासरस, मरिच (गोल या कालीमिर्च ) से युक्त करके देना चाहिये । परवल, करला आदि फलशाक देना चाहिये । केले का फल, पेठा, नई मूली, मुनक्का, पुराना गुड, ताल या खजूर का गुड़, मिश्री, सोठ, अजवायन, लहसुन, हरीतकी, अदरक, कस्तूरो, चदन प्रकृति द्रव्य अनुकूल पडते है। हृद्रोग मे वायु की अधिकता हो तो रोगी का स्नेहन कराके वमन करावे । शोधन के अनन्तर पुष्करमूल, विजौरे नीबू की जड की छाल, सोठ, कचूर, हरड, वच । इन द्रव्यो से निर्मित कषाय मे यवक्षार, घृत, सेंधानमक और कांजी मिला कर पोना। पित्त की अधिकता होने पर मधुर द्रव्यो से सिद्ध क्षीर या घृत का उपयोग करे । जैसे-गाम्भारी का फल, मुनक्का, मधुयष्टि । इन द्रव्यो का कपाय बनाकर इसमे घृत-मधु और पुराने गुड या चीनी का प्रक्षेप डालकर पिलाना । कफाधिक्य युक्त हृद्रोग मे वमन द्वारा शोधन करके त्रिवृत् मूल, बला, रास्ना, शुठी, - १ शालिमुद्गयवा मास जाङ्गल मरिचान्वितम् । पटोल कारवेल्लञ्च पथ्य प्रोक्त हृदामये ॥ तेलाम्लतक्रगुर्वन्नकपायश्रममातपम् । रोप स्त्रीनर्म चिन्ता वा भाष्यं हृद्रोगवास्त्यजेत् ॥ ( यो. र ) -
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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