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________________ चतुर्थं खण्ड : इकतीसवाँ अध्याय उबाल कर उसका पिण्ड बनाकर कपडे मे पोट्टली बनाकर सेकना, ३. इंट को गर्म करके ऊपर वातहर क्वाथ का छोटा देकर उसके वाष्प से सेंकना अथवा गर्म ईटे को वातहर क्वाथ मे वुझा कर उससे सेंकना । ४ वातहर औपधियो को पीसकर कल्क बनाकर गर्म करके उदर को सेंकना या लेप करना । ५ वात रोगाधिकार में पठित ।' शाल्वण स्वेद से उदर का स्वेदन करना भी हितकर होता है । ६ तिलादिस्वेद-तिल, एरण्ड बोज, अतसीवीज, सरसो पीसकर गर्म करके पोटली बनाकर सेंकना । गुल्म के स्थान से रक्त-वित्रावण, बाहु की शिरा के बेच (Cubitalvein), स्वेदन तथा वातानुलोमन सदैव हितकर रहता है। लघन ( उपवास या लघु भोजन), अग्नि को प्रदीप्त करने वाले एव स्निग्ध उष्ण तथा वात के अनुलोमक पदार्थ तथा वीर्य को बढ़ाने वाले सभी प्रकार के खाद्य एव पेय द्रव्यो का सेवन गुल्म रोग मे हितकर होता है । पथ्य-वातनाशक दशमूलादि द्रव्यो से सिद्ध की हुई पेया, कुलथी का यूष, जगली पशु-पक्षियो के मासरस, तथा वृहत् पचमूलादि से सिद्ध यूप गुल्मरोगियो मे हितकर होते है । पुराना चावल, गाय या बकरी का दूध, मुनक्का, फालसा, खजूर, दाडिम, आंवला, नारगी, नीबू, अम्लवेत, तक्र, एरण्ड तैल, लहसुन, छोटो मूली, बथुवा, सहिजन को फली, जवाखार, हरें, होग, विजौरा नोवू, त्रिकटु, गोमूत्र आदि पथ्य होते हैं। अपथ्य-विरोधी भोजन, गरिष्ठ अन्न, मछली, वडो मूली, मीठे फल, शुष्क शाक, आलू का अधिक सेवन, शमी धान्य (दाल आदि), वेगो का रोकना, वमन, अधिक जल पीना गुल्म रोगी को छोड देना चाहिये। विशिष्ट क्रियाक्रम-वात गुल्म मे स्नेहन, स्वेदन, स्निग्ध विरेचन, निरूहण तथा अनुवासन, श्लैष्मिक गुल्म में लघन, लेखन, स्वेदन, अग्नि का दीपन, कटु एव क्षार द्रव्यो से सिद्ध घृत । तथा स्निग्ध एवं उष्ण द्रव्यो से उत्पन्न पित्त गुल्म में स्रसन एवं रूक्षोष्ण सेवन से उत्पन्न पित्त गुल्म मे घृतका प्रयोग उत्तम रहता है। १ स्निग्धस्य भिपजा स्वेदः कर्त्तव्यो गुल्मशान्तये । कुम्भोपिण्डेष्टकास्वेदान् कारयेन् कुशलो भिषक् ।। उपनाहाश्च कर्तव्या. सुखोष्णा शाल्वणादय । २ स्थानावसेको रक्तस्य बाहुमध्ये शिराव्यध । स्वेदोऽनुलोमनञ्चैव प्रशस्त सर्वगुल्मिनाम् ॥ पेया वातहरैः सिद्धा कौलत्था धान्वजा रसाः । खडा. सपचमूलाश्च गुल्मिना भोजने हिता ॥ -
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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