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________________ चतुर्थ खण्ड : उन्तीसवाँ अध्याय ५२३ भोजन के बाद घृत और मधु के साथ प्रयोग करे। यह योग भयंकर परिणाम शूल, कामला, कृमिजपाण्डु, कृमि रोग, गुल्म, उदर रोग, शोथ तथा स्थौल्य मे हितकर होता है। __अभ्रक भस्म के योगो का भी उल्लेख परिणाम शूल चिकित्सा मे आता हैविद्याधरान तथा बृहत् विद्याधरान रस के नाम से दो योग मिलते है । उनका उपयोग झूल रोग मे उत्तम लाभ करता है। विद्याधराभ्र रस (वृहत् )-शुद्ध पारद, शुद्ध गधक, हरड, बहेरा, आंवला, सोठ, मरिच, छोटी पीपल, वायविडङ्ग, मोथा, त्रिवृतमूल, दन्तीमूल, चित्रकमूल, मूषाकर्णी और पीपरामूल प्रत्येक १-१ तोला, अभ्रक भस्म ४ तोला, लौह भस्म १६ तोला । प्रथम पारद-गन्धक की कज्जली फरे, फिर शेष द्रव्यो का महीन चूर्ण मिलाकर महीन पीसकर घृत और मधु से खरल करके २ रत्ती के परिमाण की गोलियां बना ले । मात्रा १-२ गोली। अनुपान गाय का दूध या नारिकेल जल ( डाभ--का पानी)। सभी प्रकार के शूलो मे लाभप्रद । नारिकेलखण्ड-आदि कई पाक का उपयोग परिणाम शूल मे होता है । जैसे हरीतकी खण्ड, पूग खण्ड (सुपारी पाक ), खण्डामलकी, नारिकेल खण्ड आदि । यहा पर नारिकेल खण्ड (बृहत्) का योग उद्धृत किया जा रहा है। यह एक परिणाम शूल के रोगी में उत्तम काम करने योग्य तथा बल्य एवं रसायन है। सुन्दर पके हुए नारियल की गिरी को शिला पर पीसकर वस्त्र मे रख कर जलोयाश को निकाल कर पृथक् रख ले। फिर गिरी का कल्क १ सेर लेकर ४० तोले घी मे भूनकर उसमें कच्चे नारियल का जल १६ सेर, चीनी २ सेर, सोठ का चूर्ण ३२ तोला और गोदुग्ध २ सेर मिलाकर पाक करे। जब पाक तैयार हो जाय तो अग्नि से उतार कर उसमे निम्नलिखित द्रव्यो का महीन चूर्ण मिलाकर एक कर ले । वशलोचन, सोठ, मरिच, पीपल, नागरमोथा, दालचीनो, तेजपात, छोटी इलायची, नागकेशर, धनिया, जोरा, गजपीपल प्रत्येक ४ तोले । मात्रा ६ माशे । अनुपान दुग्ध या जल । इसका उपयोग सभी प्रकार के शूल विशेपत. परिणाम शूल, अन्नद्रव शूल, अम्लपित्त तथा छदि रोग मे लाभप्रद होता है। शूल रोग मे कुछ व्यवस्था पत्र सामान्यतया शूल रोगो में वायु की अधिकता होती है, -अस्तु; तीन उदर शूल से पीडित रोगी आवे तो उसको तत्काल उदर का स्वेदन करे । एतदर्थ वातिक शूल के जो उपचार बतलाये गये है उनका प्रयोग करे । जैसे गर्म पानी को रबर के थैले या बोतल मे भर कर सेकना, उदर पर जौ का आटा और जवाखार को
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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