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________________ चतुर्थ खण्ड : उन्तीसवाँ अध्याय ५२१ उत्तम लाभ दिखलाता है। ४ शुंठी क्षीरपाक-सोठ, कालीतिल और गुड समभाग मे लेकर कुल २ तोला, दूध १६ तोला, पानी ६४ तोला आग पर चढाकर दूध मान शेष रहने पर उतार लेना । इस विधि से बने क्षीर-पाक का प्रयोग एक सप्ताह तक करने से भयङ्कर परिणाम शूल भी शान्त होता है। ५ पटोल, त्रिफत्रा, नीम का काढा मधु के साथ पीने से पित्त-श्लेष्म से उत्पन्न रोगो मे और अम्ल पित्त तथा परिणाम शूल मे लाभप्रद होता है।' तिलादिगुटिका-तिल, सोठ, हरड और शवूक भस्म ( घोघा भस्म) प्रत्येक १ तोला, पुरानो गुड़ ८ तोला । सब को अच्छी तरह खरल करके ६, ६ माशे की गुटिका बना ले। शीतल जल के अनुपान से दिन में एक या दो बार ले। इसके सेवन काल मे दूध-रोटी या मासरस और रोटी रोगी को खाने के लिये देना चाहिये। विडङ्गादि मोदक-वायविडङ्ग के बीज, सोठ, मरिच, पिप्पली, त्रिवृत, दन्ती की जड, चित्रक की जड इन सबको समभाग मे लेकर पीस छानकर सबसे द्विगुण गुड़ मिलाकर रख दे । यह अग्निवर्धक, कृमिघ्न तथा शूलघ्न योग है। लौह तथा मण्डूर के योग-आयुर्वेद के ग्रन्थो मे लौह तथा मण्डूर को परम शूलशामक माना गया है। इसके कई प्रसिद्ध एव आशु लाभप्रद योगो का उल्लेख नोचे किया जा रहा है। नारिकेल लवण-अच्छी तरह से पके हुए नारियल को ले. उसके ऊपर की जटा को पृथक् करे, फिर उसमे छेद करके, सेधानमक महीन चूर्ण भर दे फिर छिद्र को बन्द करके उसके ऊपर कपडमिट्टी कर उपले को आग मे पुट देकर जलावे । जब वह अपने आप वुझकर शीतल हो जाय तो आग से निकालकर मिट्टी को दूर करके भस्मीभूत नारियल का महीन चूर्ण मय नमक के कर लेना चाहिये। मात्रा २ माशा। अनुपान पिप्पली चूर्ण ४ रत्ती और गर्मजल से । सभी प्रकार के शूलो मे विशेषत. परिणाम शूल मे लाभप्रद । शूलवर्जिनी वटी-शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, लौह भस्म, शंख भस्म प्रत्येक २ तोला, शुद्ध सुहागा, घो में भुनी होग, सोठ, काली मिर्च, छोटी पीपल, हरड का दल, बहेरा का दल, आंवला, कचूर, दालचीनी, छोटी, इलायचो, तेजपात, तालीशपत्र, जायफल, लोग, अजवायन, जीरा, धनिया प्रत्येक १ तोला ले । प्रथम पारद एव गन्धक की कज्जली बनाकर शेष भस्म तथा काष्ठौषधियो के चूर्णो को १. पटोलत्रिफलारिष्टक्वाथं मधुयुतं पिबेत् । । । पित्तश्लेष्मज्वरच्छदिदाहशूलोपशान्तये ॥ भ. र. । -
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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