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________________ मिपकर्म-सिद्धि यहच्छा -(Occasional or Accidental ) अलक्षित या आकस्मिक ढग से किसी वस्तु का आविर्भाव या तिरोनाव होना यह छा जलानों है। इसमे ईश्वर न कर्ता है, न अकर्ता, किन्तु अपनी गत्ता मात्र में महाहद के तरगो की भांति अवतिप्टित है। यद्यपि टम जगत का व्यापार विना किती प्रयत्न के ही निप्पन्न होता रहता है तथापि अगत् के माय या अगम्बद्ध रे नाथ यदृच्छा का कोई सम्बन्ध नहीं रहता, मत् की ही उत्पनि यदृच्छा में होती है असत्त्वे नास्ति सम्बन्ध कारणं सत्त्वद्भिभि । असम्बद्धम्य चोत्पत्तिमिच्छता न व्यवस्थिति || नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सत ।। नियति-अब रही नियति, वह कौन मी वस्तु है । उल्हण के निब धमग्रह नामक सुश्रुत की टीका मे लिखा है-'नियतिस्तु धर्माधी' इति । तत्तिरीयोपनिषद् ( २।१ ) मे लिखा है-'प्रलय के अनन्तर प्राणियो के कल्याण चाहने वाले परमेश्वर ने सर्वलोक पितामह को प्रजा की सृष्टि के लिये नियुक्त किया । उनको मृष्टि करने के हेतु सर्वप्रयम आकाग उत्पन्न हुआ, आकाग मे वायु, फिर अग्नि, अग्नि से जल, जल से पृथ्वी, पश्चात् भोपधियाँ और अन्त में पुरुप की मष्टि हुई ।' ब्रह्मा ने उन पुरुपो के कर्म-विपाक का ज्ञा,कर अपने-अपने वामना स्प धर्माधर्म के माय उन्हें सयक्त किया। यही विधि निबंध या नियति कही जाती है। मस्तु, नियतिका अर्थ होता है अविषम पाप-पुण्य के फल की प्राप्ति-नियतिविपमपापपुण्यफलमिति । परिणाम-रूपान्तरप्राप्ति । यह कालवग प्रकृति का अन्यया होना ही है। चरक ने लिखा है-'काल पुन परिणाम इति, स च परिणामस्त्रिविध धमपरिणाम, लक्षणपरिणाम , अवस्थापरिणामश्चेति ।' धर्मपरिणाम में पूर्व धर्म की पूर्ण निवृत्ति होकर दूसरे धर्म की उत्पत्ति हो जाती है, जैसे-मिट्टी स्प धर्म का घट रूप में परिवर्तन । लक्षण परिणाम का अर्थ होता है-कार्य रूप धर्म की विभिन्न अवस्यायें ( Stages ।। घट का अनागत रहना प्रथमावस्या, वर्तमान रहना द्वितीयावस्था तथा अतीत होना तृतीयावस्था लक्षणपरिणाम की होती है। फिर इसी घट का क्षण-क्षण मे नयेपन का पुरानेपन मे बदलना अवस्थापरिणाम कहलाता है । वैद्यक प्रथा ने स्यूल दृष्टि से प्रकृति मे ही परिणाम बतलाया है, परन्तु वस्तुत साख्याचार्यों के अनुसार परिणाम प्रकृति में नही, प्रत्युक्त प्रकृति के गुणो में होता है। इम प्रकार गूढ तत्त्वो की व्याख्या प्रचीनो ने 'स्वभावमीश्वर काल यदृच्छा नियतिम्' आदि गन्दो में की है। याधुनिक युग के विज्ञानवत्ता इस रहस्या के
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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