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________________ ४७२ भिपक्षम-सिद्धि गुग्गल एक रसायन बोपधि है । वात रोगो के दूर करने में यह एक अव्यर्थ वा रामबाण औषधि के रूप में प्रख्यात है। इसके कई योग विभिन्न संग्रह प्रयो में पाये जाते हैं। जैसे योगराज गुग्गुल, द्वात्रिंगक गुग्गुलु, त्रयोदगाग गुगलु, पडनीति गुग्गल, गुग्गुलु वटी आदि । योगराज गुग्गुलु के पुन कई योग मिलते है । जैसे योगराज गुग्गुल, रसायन योगराज गुग्गुलु, वृहत् योगराज गुग्गुलु आदि । यहाँ पर एक लाभप्रद और उत्तम योगराज गुग्गुलु का योग चिकित्सासार. नग्रह नामक ग्रंथ से उद्धृत किया जा रहा है। योगराज गुग्गुलु-चित्रक, पिप्पलीमूल, अजवायन, काला जीरा, सफेद जीरा, वावविउझ, अजमोदा, देवदारु, चव, वडी इलायची, नेवा नमक, कूठ, रास्ता, गोखरू, धनिया, त्रिफला, नागरमोथा, विक्टु, दालचीनी, खम, यवनार, तालीगपत्र, लवड्ग, सज्जीखार, नटी (कचूर), दन्ती, गिलोय, हाऊबेर, अश्वगध, शतावरी प्रत्येक का चूर्ण १ ताला, लौह भस्म ४ तोला । इन द्रव्यो के कपडछन महीन चूर्ण और कुल चूर्ण के बराबर शुद्ध गुग्गुलु लेकर घी मिलाकर खूब कूटकर एक कर ले और १ माने की गोलियां बना कर वृतस्निग्य भाण्ड में रख ले । ___ उपयोग-आमवात, वात रोग, दुष्ट व्रण, गुल्म, अर्श मादि पचन संस्थान के रोग तथा विविध प्रकार की बातिक वेटनाओ का गामक है। मात्रा एवं अनुपान ऊपर वाले योग के सदृश है। गुग्गुलु बटी-शुद्ध गुग्गुल, नीम के गिरी को मज्जा, घी में भुनी होग, सोठ तथा लहसुन सम भाग में लेकर पूर्वोक्त राति में कूटकर वटी बनाना चाहिये । एरण्ड पाक-मुपक्व एरण्डबीज को उमके ऊपर का टिल्का निकाल कर मज्जा को ६४ तोले लेकर मेर ६ छटाक २ तोले गाय के दूध में अग्नि पर चढाकर पाक करे । फिर उसी में घृत ३२ तोले और खाण्ड १२८ तोले मिलावे । पाक करता रहे जब गाढ़ा होने लगे तो उसमें निम्न द्रव्यो का चूर्ण एक-एक तोले को मात्रा में मिलाकर पकावे-त्रिक्टु, चतुर्जात, ग्रंथिपर्ण, चित्रक, चव्य, माफ, सोया, विश्व, जीरा नफेद और स्याह, हल्दी, दाम्हल्दी, अश्वगंधा, बला, पाठा, कान्वेर, मरिच, पुष्कर मृत, गोसर, आरग्बध, देवदार, खीरे का बीज, क्वडी का बीज, गनावरी। पुराने मामवात, कटिगल, गृध्रसी, थानाह, कस्तभ यादि-मे लाभप्रद । माना २ तोला । गाय के दूध के माय । अमृत मल्लातक-अच्छे पके और पष्ट भिलावे - को एक दिन गोमूत्र में और तीन दिन गाय के दूध में भिगो कर रखे। फिर कपड्छन किये हुए हट के
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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