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________________ चतुर्थ खण्ड : पचीसवाँ अध्याय ४६६ जिनका नीचे उत्लेख किया जा रहा है, केवल वाह्य प्रयोग अर्थात् मालिश में ही व्यवहार करना चाहिये । प्रथम की अपेक्षा द्वितीय वर्ग वाले तेल अधिक पोडागामक होते है। विपगर्भ तेल-ताजे असगंध के मूल, कनेर की जड, आक की जड, धतूरे का पचाङ्ग, सभालू की पत्ती और कायफर की छाल प्रत्येक। ६४-६४ तोले लेकर भठगुने जल मे क्वाथ करे, जब चौथाई जल बाकी रहे तो कपडे से छान कर उसमे तिल का तेल १२८ तोले, बछनाग, धतूरे के वीज, घुमची, अफीम, खुरासानी अजवायन, कलिहारी की जड, कूठ और वच प्रत्येक ४-४ तोला कल्क मिला कर मद यांच पर पकावे । तेल तैयार होने पर कपडे से छान कर , कुछ गर्म हालत मे ही कपूर का चूर्ण एक छटाक मिलाकर शीशी मे भर कर रख ले। उपयोग-सधिवात तथा शरीर के किसी भी अवयव मे दर्द होता हो इनकी हल्के हाथ से मालिश करे । पोडा को शान्त करने के लिये यह उत्तम योग है। पंचगुण तैल-हरे, बहेरा, आँवला प्रत्येक ५ तोला, नीम और सभालू की पत्ती प्रत्येक १५-१५ तोले । जौकुट कर अठगुने जल मे पकावे । जब चौथाई शेप रहे तो उसमें तिल का तेल ८० तोला, मोम, गंधविरोजा, शिलारस, राल और गुग्गुलु प्रत्येक ४ तोले टाल कर मदी आच पर पकावे । पकते-पकते जव खर पाक होकर तेल अलग हो जाय तव कपडे से छान कर थोडी गर्म हालत में उसमें कपूर का मोटा चूर्ण ५ तोला चम्मच से चलाकर मिला दे। ठंडा होने पर उसमे तारपीन का तेल, 'यूकलिप्टस का तेल, काजुपुद का तेल २॥२॥ तोला मिला कर शोशी में भर ले। उपयोग-सभी प्रकार की वेदना, सधिशोध, गूल मे 'वेदनाशामक होता है। कान के दर्द मे कान मे छोडने पर वेदना का शमन करता है। व्रणोपचार में व्यवहृत होकर व्रण का शोधन एवं रोपण करता है। ('सि. यो 'सग्रह से ) मिश्रक तैल-सरसो का तेल, तिल का तेल, नारियल का तेल, एरण्ड तेल, महुवे का तेल, कुसुम्भ । वरे ) के तेलो का मिश्रण छागलाद्य घृत-चर्म-खुर-लोम-सीग-आन्त्र से रहित बकरे का मास ॥ सेर, दशमूल की समभाग में ली गई औपधियाँ ढाई सेर और जल २५ सेर ४८ तोले अग्नि पर चटाकर चतुर्थाश शेप रखे । कल्क द्रव्य-मधुयष्टी, जीवनीय गण की औपधियाँ पृथक्-पृथक लेकर कुल मिलाकर ३२ तोले । फिर दुग्ध १२८ तोले । शतावरी का स्वरस १२८ तोले । गोघृत २ प्रस्थ ( १२८ तोले)। मद आँच पर पाक करे । वात रोगो मे इसका सेवन लाभप्रद होता है । यह परम वृहण
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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