SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 517
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ खण्ड : पचीसवाँ अध्याय ४६७ के साथ पन्थर पर पोस कर फल्क बनाकर तेल में डाल कर गधोदक मिलाकर पुनः पाक करे। गंधोदक-विधि-तेजपात, खस, मोथा, वला की जड प्रत्येक १०० तोले, कूठ १० छटाक, जल २० सेर, आग पर चढाकर पाक करे । आधा शेप रहने पर अर्थात् १० सेर शेप रहने पर छान ले। इस गधोदक को द्वितीय पाक में कल्क के साथ डाले एवं पाक करे । तृतीय पाक प्रकार-कल्क के लिये नागकेशर, कूठ, दालचीनी, तगर, केशर, सफेद चदन का बुरादा, लता कस्तूरी, ग्रथिपर्ण, लवङ्ग, गर, शीतलचीनी, जावित्री, जायफल, छोटी इलायची और लवन के वृक्ष की छाल प्रत्येक १२ तोले। पत्थर पर पीसे हुए इस कल्क को तेल मे छोडकर, फिर उपर्युक्त गंधोदक तथा चदनोदक ( चंदन को खोलाकर बनाया जल ) कुल १० सेर डाल कर पाक कर ले । फिर इस तेल को छानकर उसमे कस्तूरी २४ तोले और कपर ६ तोले मिलाकर । सुरक्षित रख ले। " यह महागुणवान् प्रसारणी तैल अन्य प्रसारणी तैलो से अधिक गुणवान् है । अधिक व्यय तथा परिधम साध्य होने से श्रीमान् व्यक्तियो के लिये व्यवहार्य है। अस्तु, इसका नाम महाराज प्रसारणी तेल है। वात रोगो मे सिद्ध एव परमोत्तम योग है। नारायण तैल-असगध, बलामूल, वेलमूल, पाढर के मूल, छोटी कटेरी रैगनी भटकटया), वडी कटेरी (बनभटा), गोखरू, सभालू की पत्ती, सोनापाठा की छाल, गहदपूर्ना को जड, उडद, कटसरैया, रास्ना, एरण्डमूल, देवदारु, प्रसारणी, अरणी प्रत्येक ४० तोले । इन द्रव्यो को जौकुट करके ४ द्रोण ( ४०९६ तोले ) जल में पकाये । जव चौथाई जल शेष रहे तो ठंडा होने पर छान कर रख ले । पीछे उसमें तिल का तेल २५६ तोले, शतावर का रस २५६ तोले, गाय का दूध २५६ तोले । एवं निम्न औपधियो का कल्क छोडकर अग्नि पर चढाकर पाक करे। कल्कद्रव्य-कूठ, छोटी इलायची, श्वेत चदन, बरियरा को जड, जटामासी, छरीला, सेंधा नमक, असगध, वच, रास्ना, सौफ, देवदारु, सरिवन, पिठवन, मापपर्णी, मुद्गपर्णी और तगर इनमे से प्रत्येक ८ तोले । तेल का पाक करे । पाक के सिद्ध होने पर तेल को छानकर शीशियो मे भरकर रख ले । उपयोग-पक्षाघात, अदित, हनुस्तभ, मन्यास्तंभ, अवबाहुक, कटिशूल, पार्श्वशूल, कान का दर्द, गृध्रसी, किसी अवयव का सूखना, एकाग घात, अर्धाङ्ग घात तथा सर्वाङ्ग घात मे लाभप्रद । इसका उपयोग अभ्यग के लिये, पीने के लिये, वस्ति देने मे, नस्य में तथा कान मे छोडने मे किया जा सकता है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy