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________________ भिपकर्म-सिद्धि २ पास रह कर विद्या पाई है। निदान-पत्रक के कुल पांच दिनों के पाठ से हो हो गया और विषय की दुस्हता के भय से मैं तृप्त छोड़कर चला आया था शिष्य के पाण्डित्य की ' देखि सरासन गवहि सिधारे ।' गुरु ने इस कथन से थाह ले ली, समझा यह पूर्ण कार्य - कुगल हे, क्रियाभ्यास में, चतुर होने से उस चिकित्सानेपुण्य और यश इतना व्यापक है, परन्तु जान्न जान अनूरा है | इसके अधूरे ज्ञान को आज पूरा कर दूँ । अन्त मे गुरु ने अपनी प्रगन्न मुद्रा व्यक्त करते हुए कहा कि 'शिष्य में आज तुम्हारे ऊपर बहुत प्रसन्न हैं यदि तुम्हे कही शास्त्र मे शका हो तो पूछो आज में तुम्हारी सभी मकाओ को निवृत्त कर दूंगा ।' शिष्य ने कहा- 'गुरुजी मुझे केवल आपका प्रसाद एव आशीर्वाद चाहिये मुझे केवल आपके पांच दिनो के पटाये पाठ में ही का है -- उसके अतिरिक्त या शेप में मुझे कही भी शका नही है---और नि समय हूँ ।' इस कहानी से 'पचनिदान' विषय को दुम्हता स्पष्ट हो जाती है । विषय को दुरवगम्यता के अतिरिक्त इस कथन का एक दूसरा कारण यह भी है, कि यह विपय अधिक शास्त्रीय एवं कम व्यावहारिक है । 'प्रैक्टिस' के 'फील्ड' मे पत्र निदान का स्थूल ज्ञान जैसे, निदान के माने कारण ( Etiology ), पूर्वरूप का अर्थ अव्यक्त लक्षण, जो भावी रोग का सूचक हो ( Premonitory signs or Prodiomata ), स्प का अर्थ रोग का व्यक्त लक्षग ( Sympto matology), सम्प्राप्ति का मतलब रोगोत्पत्ति की विधि (Pathogenesis ) और उपशय का भाव उपायात्मक निदान ( Theraputic test ) जान लेना ही पर्याप्त है । चिकित्सिक को व्यावहारिक क्षेत्र मे इससे अधिक जानने को आवश्यकता नही रहती, वह अपना कार्य सुचारु रूप से कर लेता है । ठीक भी है--'आम खाने से काम गुलठी गिनने से क्या फायदा ।' फिर भी इस विषय का विमर्श आयुर्वेद शास्त्र मे अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है । जैसे सम्पूर्ण उपनिपदो का नवनीत 'श्रीमद्भगवद्गीता' मानी जाती है उसी प्रकार 'निदानपचक' को आयुर्वेद शास्त्र का नवनीत कहे तो अत्युक्ति नही होगी । इसमे 'गागर मे सागर' भरी उक्ति चरितार्थ होती है । कुछ सीमित पृष्ठो मे आचार्य तथा टीकाकारो ने मिलकर गूढ तत्त्वो का सन्निवेश एक स्थान पर पचनिदान नामक व्याख्या के रूप मे कर रखा है । आयुर्वेद के रोग, निदान तथा चिकित्सा सम्वन्धी वहुविध सिद्धान्तो का प्रतिपादन एव विवेचना इस पचनिदान में पाई जाती है । एतदर्थ ही श्री माधवकर ने स्पष्ट शब्दो मे कहा है 'सङ्घ' द्यो को अपनी चिकित्सा मे उत्तम सिद्धि प्राप्त करने के लिये यत्नपूर्वक इम पचनिदान विषय को जानना चाहिये भै •
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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