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________________ भूमिका समारसिन्धुमतिदुस्तरमुत्तितीर्पोर्नान्य. प्लवो भगवत पुरुषोत्तमस्य । लीलाकथारसनिपेवणमन्तरेण पुसो भवेद्विविधदुखदवार्दितस्य ।। ( श्रीमद्भागवत १२/४ ) आयुर्वेद परिभाषा - आयुर्वेद या वैद्यक की व्याख्या बहुत से विचारकों ने एकदैशिक लक्षणों के आधार पर भिन्न भिन्न की है । कुछ लोगों के विचार से चरक-सुश्रुत-वाग्भट प्रभृति प्राचीन संहिताओं मे लिखित और सीमित अंश ही आयुर्वेद है । दूसरे लोगों की राय मे पश्चात्कालीन संग्रह ग्रंथों मे वर्णित रसयोगो की चिकित्सा ही वैद्यक है । कुछ पर्यवेक्षकों की दृष्टि मे चिकित्सा - विज्ञान की प्रगति जहाँ पर स्थगित हो गई है, वहाँ तक आयुर्वेद है शेष या आगे का अन्य कुछ | इन व्याख्याओं में सत्यांश जरूर है परन्तु परिभाषा एकदैशिक है, समग्र की बोध कराने वाली नही । इस प्रकार अत्यन्त प्रत्यक्ष के आधार पर की गई व्याख्या से पृथक् स्वरूप की परिभाषा वैद्यक के मर्मज्ञ लोग करते है । उपर्युक्त व्याख्याकारों की उपमा गोली के शब्द मात्र से चक्कर मारते हुए बगले के समुदाय से दी गई है क्योंकि तंत्र के एक देश के शब्द मात्र से ही पूरे तंत्र की परिभाषा करना तत्सदृश ही व्यापार हैशब्दमात्रेण तन्त्रस्य केवलस्यैकदेशिका | भ्रमन्त्यल्पबलास्तन्त्रे ज्याशब्देनैव वर्त्तकाः ॥ ( च० सू० १३०) आज से सहस्रो वर्ष पूर्व भी आयुर्वेद क्या है ? इस समस्या का समाधान अपेक्षित रहा । फलतः परिभाषा तद्विद्य आचार्यों को करनी पडी थी । सर्वप्रथम उसी आख्यान का साराश ग्रहण करने के लिए प्रवृत्त होना चाहिए । वेद तो चार है ऋक्, यजु, साम और अथर्व, तो पडा ? इस प्रश्न के उत्तर में वेद का स्वरूप–यदि कोई प्रष्टा होकर पूछे कि फिर आयुर्वेद कौन-सा वेट है यह कहाँ से टपक उत्तर - दाता को चाहिए कि अथर्ववेद मे अपनी भक्ति दिखलावे | क्योंकि चिकित्सक को अथर्ववेद की ही सेवा वांछित है । अथर्ववेद और आयुर्वेद मे अभेद समझना चाहिए । अथर्ववेद दान स्वस्त्ययनवलि - मंगल - होम - नियम- प्रायश्चित्त- - उपवास तथा मन्त्रादि के परिग्रह के द्वारा चिकित्सा का ही कथन करता है । चिकित्सा का परम उद्देश्य भी आयु के हित या लाभार्थ ही - प्रवर्तित होता है । अत. अथर्ववेद हो आयुर्वेद है । ' १ ऋग्वेदस्यायुर्वेद उपवेद । व्यासकृत चरणव्यूह मे ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद को माना गया है ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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