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________________ भिपक्षम-सिद्धि छोटे छोटे कार्य भी निष्प्रयोजन कर्म की श्रेणी में आने से मानस रोग या उन्माद के द्योतक ( Abnormal Psycosis) है। लोभ, क्रोध आदि के वेग का संवरण न कर सकना आदि भी सामयिक पागलपन ही है। विचार करने से ऐसा प्रतिभात होता है कि स्वस्थ की परिभापा के अनुसार "समदोष समाग्निश्चः समधातुमलक्रियः। प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते ।" जिस प्रकार पूर्ण स्वस्थ शरीर वाले मनुष्य, समाज में बहुत थोडे है उसी प्रकार समाज का बहुत कम भाग ऐसा है जो मानस रोगो से पूर्णतः मुक हो। इसका वर्णन प्राकृतिक सत्त्व-विवेचन मे आगे किया जायगा । ___ शारीरिक रोगो को अपेक्षा मानस रोगो का अनुपात अधिक ही पाया जाता है। देश के अधिकाधिक औद्योगीकरण से संभवत. यह अधिक वढ रहा है । ऐसा कुछ वैज्ञानिको का अनुमान है। किन्तु शारीर और मानस रोगो मे अंतर यह हैचिकित्सा-शास्त्र ग्रथो मे शारीरिक रोगो का वर्णन विशद रूप मे पाया जाता है फलत उनके पहचानने में सोकर्य भी होता है। इसके विपरीत साधारण अवस्था में मानस रोगो का ज्ञान नहीं हो पाता अपितु जब वह उग्ररूप धारण करता है तव हम उसको उन्माद या पागलपन के रूप मे समझ पाते है । वास्तव में यह वहुत पूर्व ही प्रारंभ हो जाता है । मानसिक रोग शारीरिक रोगो की अपेक्षा बद्धमूल होकर असाध्य भी शीघ्रता से होते है। इसके अतिरिक्त मानस रोगो में शारीर रोगो की अपेक्षा वश-परम्परा मे चलने की प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है। __वैद्यक ग्रंथो में वर्णित मानस रोग उन्माद में स्पष्टतया दो वर्ग के पाये जाते है-एक सामान्य वर्ग, जिनमे लक्षणो की उत्पत्ति होने पर शारीरिक दोषो के वैपम्य अथवा मानस दोप-रज-तम की घटा-बढी अवस्था के अनुसार उसकी उत्पत्ति मे उपपत्ति दी जा सके, जैसे-वातिक, पैत्तिक,श्लैष्मिक तथा त्रिदोषज उन्माद । दूसरा वर्ग-विशिष्ट उन्मादो का पाया जाता है । जिन अवस्थावो में लक्षणो के प्रकट होने पर त्रिदोपवाद के अनुसार सत्त्व दोपो (रज-तम) के अनुसार कोई उपपत्ति नहीं दी जा सकती। इस वर्ग के विशिष्ट उन्मादो का कारण उन्होने भूत-पिशाच प्रभृति इन्द्रियातीत तत्त्वो को स्वीकार किया है । यह आगन्तुक उन्मादो का वर्ग है । भूत-पिशाच आदि की सत्ता का विषय आज भी विवादास्पद बना हुआ है। परन्तु कई बार इस प्रकार की घटनायें प्रत्यक्ष देखने को मिलती है, जिनके आधार पर इन्हे निरर्थक कह कर नहीं टाला जा सकता है। हाँ शका एक अवश्य यह हो सकती है कि इन भूत-प्रेतो का रोगोत्पत्ति में साक्षात् कारण माना जाय या
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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