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________________ ४३२ भिवकर्म-सिद्धि घर से बाहर किसी चौराहे पर रख देना ९ रक्षामंत्र, १० स्नान-धात्री तथा वालक का विशेष विधियो से स्नान कराना। भूत-विद्या के अतर्गत वाल रोगो का समावेश सभवत• असमर्थतावश आचार्यां ने किया है। क्योकि-इस प्रकार के नवप्रसूत बालको के कोमल और मूक शरीर में रोग का निदान वडा ही कठिन होता है । निदान क्वचित् हो भी जाय आभ्यंतर मे प्रयुक्त होने वाली सामान्य एवं निरापद ओपवियो से उपचार करना कठिन हो जाता है। अस्तु, अभ्यंग, उत्सादन प्रभृति बाह्य उपचारो के द्वारा तथा मंत्र-तंत्र और यंत्र द्वारा चिकित्सा करना युक्तिमगत प्रतीत होता है। अस्तु, वालग्रह सज्ञा से इस कालमर्यादा को होनेवाली व्याधियो का वर्णन आचार्यों ने किया तथा उसके उपचार में व्यवहृत होने वाले शान्ति कर्म, वलिहरणादि क्रियावो का उपदेश किया। भूत-विद्या के अतर्गत दूसरा प्रमुख प्रसंग उन्माद रोग के अधिकार में आता है। मद-मूर्छा-सन्यास-अपतंत्रक-अपस्मार तथा उन्माद ये ऐसे रोग है-जिनमें शारीरिक दोप वात-पित्त-कफ तथा मानसिक दोप सत्त्व-रज और तम, दोनो का मतुलन बिगड जाता है और शरीर तथा मन दोनो के दोपो मे वैपम्य पैदा होता है। विविध मानसिक या मस्तिष्कगत रोगो में मनमें विकार कैसे पैदा होता है, इस विषय को समझने के लिए थोडा मन के दोप, गुण और क्रिया का सक्षिप्त ज्ञान हो जाना आवश्यक है। ___मनके गुण तथा दोप--प्रकृति के समान मन भी त्रिगुणात्मक होता है । प्राकृत अवस्था में इसमें मत्त्व गुण को ही प्रधानता रहती है । अस्तु, इसका दूमरा नाम ही सत्त्व पड गया है। रज और तम मन के दो दोप है-"रजस्तमश्च मनसा द्वो दोपावुदाहृतो।" इन दोनो की विपमता या प्रबलता से विविध मानसिक रोग पैदा होते है । मन के कार्य और उसकी क्रिया को सम्पन्नता कर्तव्या-कर्तव्य का विचार, तर्क, ध्यान, संकल्प, इन्द्रियो का नियमन तथा अपना नियमन आदि मन के कर्म हैं चिन्त्यं विचार्यमूह्यञ्च ध्येयं संकल्पमेव च । यत्किचिन्मनसो नेयं तत्सर्व ह्यर्थसंज्ञकम् । इन्द्रियाभिग्रहः कर्म मनसः स्वस्य निग्रहः ।। (च शा ) । - - १. विस्तार के लिए देखिये सुश्रुत उत्तरस्थान बालग्रह-प्रतिपेध ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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