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________________ ४३० भिकर्म-सिद्धि देता है। वालक के माता-पिता तथा चिकित्सक की बुद्धि एवं युक्ति भी अकिचित्कर होती है, वे किंकर्तव्य-विमूढ हो जाते है। जो कुछ भौतिक उपचार करता है वह भी प्राय. सफल नहीं होता। असफलतावो के कारण चिकित्सक हताश हो जाता है। इनमे न ठीक निदान हो हो पाता है और न ममुचित चिकित्सा ही। छोटे रोगी का सहयोग ( Co operation ) भी चिकित्सक के लिए दुर्लभ हो जाता है । फलत चिकित्सा में असफलता ही अधिक मिलती है और मफलता कम। इन रोगो में आयुर्वेद अपने भूत-विद्या नामक अग के शरण लेने का उपदेश देता है जिसमें कई प्रकार के आधिभौतिक, आधिदैविक तथा आध्यात्मिक उपायो से वालक रोगी के रोग-निहरण के लिए उपदेश पाया जाता है। रोग के निश्चय में वह विशेप प्रकार के हेनु, रोग की भिन्न प्रकार की सजा, विशिष्ट प्रकार के पूर्वस्प तथा उपचारो के अलौकिक रूपो का आख्यान करता है । इन अवस्थावो मे वालको के रोगो की सज्ञा बालग्रह हो जाती है। उपचार में युक्ति की अपेक्षा परम्परा या देव की विगेपता बतलाता है। इसके लिए ग्रहवाधा-प्रकरण नामक विगेप अध्याय लिखा जाता है, जिसका सम्बन्ध उसके अन्य सात अगो से न करके, विगिप्ट अग भूत-विद्या से जोडता है । फलत वालग्रह के उपचार तथा आगन्तुक अनुवधो के उपचार कुछ दूसरे प्रकार के हो जाते है जो आयुर्वेद का अपना वैगिष्टय बन जाता है। विषय को अधिक स्पष्ट करने के लिए यहां पर अत्यन्त संक्षेप मे इन ग्रहो के नाम, स्वरूप तथा उपचारो का एक व्यावहारिक वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है। वाल ग्रह-रोग कई स्वरूप के होते है। इनसे अत्यन्त तीव्र स्वरूप के (Acute ) और कई वार जीर्णस्वरूप के (Chronic ) लक्षण भी. पैदा होते है, परन्तु घातक प्राय सभी होते है । वालग्रह-सामान्य रूप-ग्रहोपसृष्ट वालक में सामान्यतया निम्नलिखित लक्षण नमुदाय ( Syndrome ) पाये जाते है। जैसे-ज्वर, क्रन्दन, चीकना, चिल्लाना, आंख एव भ्रू का नचाना, मुख से फेनोद्गम, ऊपर की ओर स्थिर नेत्रो ने देखना, दांतो का कटकटाना, अनिद्रा, भयाकुल उद्विग्नता, माता का स्तन्यत्याग (दूध न पीना), स्वर और चेष्टावो का विकृत होता, नख से माता या धानी के शरीर का कुरेदना, निसंजता (बेहोशी), विवध या अतिसार, उसके शरीर मे मान-रक्त से मछत्री, खटमल या छुछुन्दर जैसी दुगंध का माना। इन लक्षणो के आधार पर बाल ग्रह से जुष्ट बालक का निदान करना सम्भव रहता है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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