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________________ ४०६ भिपकम-सिद्धि गीतल जल मूर्च्छा, रक्तपित्त, हर्दि, तृपा, दाह, मदात्यय तथा कशित व्यक्तियो मे लाभप्रद होता है । ' पथ्य-धान्यलाज या तालमखाने की खील का सत्तू बनाकर पानी में घोल कर पतला बनाकर मिश्री मिलाकर दिया जासकता है। जो या वाट्य. मण्ड ( वार्लो वाटर) मधु और मिश्री मिलाकर, या कोद्रव ( कोदो) या चावल की पतली पेया या मण्ढ मिश्री मिलाकर दिया जा सकता है । भुने हुए मूग, मसूर या चने की दाल का पतला यूप पीने के लिए दिया जा सकता है । केले का फूल, द्राक्षा ( दाख), पित्तपापडा, कपित्थ, जंगली वेर ( कोल ), इमली, कुष्माण्ड आदि की पेया । खजूर, दाडिम (अनार या वेदाना मीठा ), आंवला, ककड़ी, खस का पानी, जम्बीरी नीवू या कागजी नीवू, करमर्द, गाय का दूध, तक्र, महुए का फूल प्रभृति तिक्त एव मधुर द्रव्य हितकर होते है । नारिकेल या डाभ का पानी, पन्ना, शहद, तालाव का जल, सीफ, केसर, इयायची, जायफल, हरीतकी, धनिया, तूपाशामक होते है । गोतल चादनी में बैठना, घूमना, सोना, शीतल पवन का सेवन, श्वेत चंदन, कपूर आदि का अनुलेपन तथा अन्य पित्तशामक आहार, विहार तृष्णा के शामक होते हैं । मास-मात्म्य व्यक्तियो मे कबूतर का मासरस घृत में बना कर देना उत्तम रहता है । वृत में पकाया छाग ( बकरे ) का मास भी लाभप्रद होता है । अपथ्य - तृष्णा रोग मे स्नेह, अञ्जन, धूमपान, स्वेदन, व्यायाम, धूप में रहना, अम्ल, कटु, लवण रस पदार्थ, तीक्ष्ण पदार्थ, दूषित जल, स्त्रीसंग आदि का परिवर्जन करना चाहिए । तृष्णा के भेदानुसार विशिष्ट क्रियाक्रम - 3 वातिक मे - वातघ्न, शीत १. मूर्च्छादितृपादाहस्त्री मद्य भृशकशिताः । पिवेयु. शीतल तोयं रक्तपित्ते मदात्यये ॥ ( भै र ) २ हृद्य सुमधुर शीत मेवेत तृपयादिनः । उग्रमुद्देगजनन त्येजत् सर्वमतन्द्रित ॥ ३ वातघ्नमन्नपान मिष्टं गीत च वाततृष्णाया । स्याज्जीवनीयसिद्ध क्षीरवृत वातजे तर्पे ॥ पित्तजाया तु तृष्णाया पववोदुम्बरज रमम् । तत्ववायो वा हिमस्तद्वच्छारिवादिगणाम्बु वा ॥ यच्चोक्त कफनृष्णाया छद्य तत्तथैव कार्य स्यात् । पयसाथवा प्रदद्याद्रजनी मधुशर्करायुक्ताम् || यो० २० क्षतोत्थिता रुग्विनिवारणेन जयेद्रमानामसृजश्च पार्ने । क्षयोत्थिता क्षीरजल निहन्याद् मासोदकं वाऽथ मधूदकं वा ॥ गुर्वन्नामुल्लिस ने जयेच्च क्षयादृते सर्वकृताञ्च तृष्णाम् ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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