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________________ ३८ भिपकम-सिद्धि है । मूखे फल-मुनक्का, खजूर, वादाम आदि मेवे उत्तम रहते है । जागल पशुपक्षियो के मासरस का सेवन भी पथ्य होता है। तमक ग्वाम के रोगो मे प्रात. काल में सूर्योदय के पूर्व किमी जलागय या नदी में स्नान करना भी लाभप्रद पाया जाता है। स्नान के बाद शीघ्रता से अग को पोछ कर गर्म कपडे मे शरीर को मावृत कर लेना चाहिए। पीने के लिए उष्ण जल देना चाहिए। श्वास और हिक्का के रोगी में शीतल जल प्रतिकूल पडता है। ब्रह्मचर्य का पालन भी इस रोग मे पथ्य होता है। श्वास के रोगियो मे तम्बाकू के नस्य की आदत डालना उत्तम रहता है। पन्द्रहवा अध्याय स्वरभेद-प्रतिपेध प्रावेशिकाले का भारीपन या गले का वैठना या नावाज का भही होना स्वरभेट कहलाता है । यह प्रतिश्याय, कास और ग्वास रोग में पाई जाने वाली एक सामान्य व्यथा (complaint) है । कई दगावो में मिल सकता है, मामूली म्वरभेद, दीर्घकालीन स्वरावमाद, स्वरलोप अथवा स्वगेपघात । शब्दोच्चारण मे होने वाला विकार अर्थात् म्वरभेद स्वरयत्र के स्थानिक अथवा मस्तिष्कगत वाणी केन्द्र के प्रभावित होने से आशिक या पूर्णधात तक हो सकता है। स्वरयत्र के स्थानिक विकृति के भेद से कई प्रकार का रूप हो सकता है जैसे १.खरवरता (Hoarseness of voice) २ भापणकृच्छ्रता (Dysphagia) ३ वरावसाद (Aphonia), यह अवस्था तीन स्वर-यत्र गोथ (Acute or catarrhal laryngitis) अथवा पुराण स्वर यंत्र शोथ ( chronic laryngitis) में मिलती है। स्वरभेद से अपने अध्याय का प्रतिपाद्य विपय यही तक मीमित है। इस प्रकार स्वरभेद लंचे स्वर से वोलना या गाना (भापण देना, चिल्लाना), अत्युच्च म्बर मे मव्ययन ( पाठ करना), अभिघात ( Tranma ) अथवा विपसेवन से होता है । इन कारणो से वातादि दोप कुपित होते है और वे कुपित होकर स्वरगही स्रोतो में अविष्टित होकर स्वर को नष्ट कर देते है जिसे स्वर
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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