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________________ ३८६ भिपकर्म-सिद्धि उममें मोरा घुल सके तो उसको संतृप्त घोल या विलयन कहते है ) में भिगोकर । छाया में सुखा कर रखले । आवश्यकता पड़ने पर इसकी मोटे कागज में निगरेट जैने बना कर जला कर उसका चूम पिलावे । दौरे में तत्काल आराम होता है । रोगी को खुझी अनुभव हो वे तो थोडी देर बाद गो का दूध और मिश्री पीने को देना चाहिए। - उपसंहार-श्वास के णंच भेद बतलाये गये है। इनमे महाश्वाम, ऊर्व श्वान, तथा छिन्न बाम अमाध्य बतलाये गये है। इनमें चिकित्सा ईश्वराधीन रहती है। यदि रोगी को आयु शेष है तब तो उपचार से लाभ की आगा रहती अन्यथा प्राणभय उपस्थित रहता है। इन अवस्थाओ मे अधिकतर हृदय तथा वसनक उत्तेजक योगो का प्रयोग ( Heart Respiratory Stimulants) ही श्रेयस्कर होता है। जैसे कूपीपक्व रसायन, रस सिन्दूर, चन्द्रोदय, मकरध्वज, कस्तूरी भूषण, चतुर्मुख रस आदि । इस अधिकार में पठित नागार्जुनान, महाश्वासारि लौह अथवा श्वासकास चिन्तामप्ति रस उत्तम योग है। इनमे से क्मिी एक का किसी एक कूपवत्र रसायन के माथ मिश्रित करके देना चाहिए । जैसे रस सिन्दूर ३२०, म्वासकामचिन्तामणि रन २ २०, नागार्जुनान म १२० मिश्रित एक मात्रा दिन में तीन या चार मात्रा मण्डूकपर्णी के रस और मधु के साथ या रुद्राक्ष के घृष्ट चंदन और मधु के माथ। रोप दो श्याम रोगो मे अर्थात् तमक श्वास या क्षुद्र ग्वाम रोगो में ही प्रयुक्त होने वाली सम्पूर्ण चिक्लिा का उल्लेख पाया जाता है। क्षुद्र ग्वाम तो एक सुमाव्य रोग है। किमी एक योग के प्रयोग से पीड़ित रोगी लाभान्वित हो जाता है, परन्तु तमक वाम (Asthma) एक चिरकालीन स्वरूप का हठी फलत याप्य रोग है । इनमे व्यवहत होने वाले वहविध उपचारो का उल्लेख ऊपर में हो चका है। याधुनिक दृष्टि से तमक श्वास टक्कजन्य ( Renal ), हृज्ज (cardiac) हृदय के विकारो के कारण तथा श्वासनलिकीय (Bronchial) प्रभृति हो सकते है । कई वार बनर्जना ( Allergic) जन्य भी पाया जाता है। उप्ण कटिबंधज उपमिप्रियता ( Tropical Eosinophilia ) तमक वाम के नग ही विकार है। इन सभी यवस्थामो मे चिकित्सा का भेद होते हुए पर्याप्त ममता है। इन ममता के आधार पर ही आयुर्वेद ग्रंथो में चिकित्सा लिखी मिलती है। यहां पर एक अनुभूत व्यवस्था पत्र दिया जा रहा है जो प्राय नभी प्रकार के वाम रोगो में लाभप्रद पाया जाता है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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