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________________ भिपक्कम-सिद्धि । १ हलुवा बनाकर-वादाम ११ दाने, इलायचो ११ दाने, मरीच ७ दाने । पोसकर घी २ तोले मे भूनकर मिश्री २ तोले मिलाकर दूध से सेवन करना । यह योग पुरानो खाँमी, जुकाम, श्वास रोग में बड़ा लाभप्रद मिला है । आवश्यकतानुसार एक या दो बार दिन में लिया जा सकता है। २ तेल रूप में सेवन-वढिया रोगन बादाम का चाय वालो चम्मच से १-२ चम्मच गर्म दूध में मिला कर पीना। निरामिप आहार वालो मे जिनको माम से परहेज है, इस तेल का प्रयोग पर्याप्त वृंहण करता है। काडलिवर आयल के प्रतिनिधि रूप मे व्यवहृत हो सकता है। तेरहवा अध्याय कास रोग-प्रतिषेध प्रावेशिक-कास रोग के पाँच भेद बतलाये हैं। जैसे वातज, पित्तज, श्लेष्मज, क्षतज और क्षयज । उनमें प्रारभिक तीन प्रकार के सुखसाध्य और शेप दो कृच्छ साध्य होते है । अथवा यदि रोगी बहुत क्षीण हो तो असाध्य हो जाते है। जराकास वृद्धावस्था में होने वाला एक प्रकार का दीर्घकालीन कास भी याप्य ही होता है। १ सम्यक् उपचार न होने पर सभी का अतिम परिणाम क्षयज कास या क्षय रोग होता है । ___ व्यावहारिक दृष्टि से विचार किया जाय तो कास के दो-सूखी खांसी या गीली साँसी भेद से अथवा तीन प्रकार प्रधानतया मिलते हैं। १ शुष्क कास या वातिक काम (सूखी खाँसी) तथा २ श्लैष्मिक काम (गोली खाँसी) तथा ३ पैत्तिक कास (खूनी खाँमी) । खूनी खाँसी के वर्ग मे ही क्षतज कास का समावेश हो जायगा जिसमें रोगी को खाँसी के साथ रक्त आता है। रोग की अवधि की दृष्टि से भी काम का विचार करना समीचीन रहता है। तीव्र या नवीन कास ( Acute Bronchitis), चिरकालीन या दीर्घकालीन कास । नवीन कास के वर्ग मे १ वातादिजास्त्रयो ये च क्षतज क्षयजस्तथा । पञ्चते स्युर्तृणा कासा वर्धमानाः क्षयप्रदाः ॥ साध्यो बलवता वा स्याद्याप्यम्त्वेव क्षतोत्थित । नवी कटाचित् सिद्धय तामेता पादगुणान्वितो ॥ स्थविराणा जराकास' सर्वो याप्य. प्रकीत्तित । श्रीन्साध्यान्साधयेत्पूर्वान् पथ्यर्याप्याश्च यापयेत् ।। (च० चि० १८) -
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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