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________________ चतुर्थ खण्ड : बारहवाँ अध्याय ३५६ उत्तम लाभप्रद योग है । क्षयज कण्ठमाला मे तथा मधुमेह के साथ पाये जाने वाले क्षय रोग मे विशेप लाभप्रद होता है। महामृगाङ्क रस-मृगाङ्क रस राज-यक्ष्मा मे एक स्वनामख्यात योग हैं। इसके चार पाठ मिलते है-१. स्वल्पमृगाङ्क २ मृगा ३ राजमृगाङ्क (सताम्र भस्म ) तथा ४ महामृगाङ्क रस इस मे राजमृगाङ्क नामक योग का पाठ यहाँ दिया जा रहा है : पारद की भस्म अथवा रस सिंदूर ३ भाग, स्वर्णभस्म-ताम्रभस्म एक-एक तोला, शुद्ध मन शिला, शुद्ध हरताल शुद्ध गधक प्रत्येक २ तोले । प्रथम पारद गधक की कज्जली बनाकर शेष द्रव्यो को मिलाकर महीन चूर्ण बनावे फिर वडी-बडी कौडियो मे थोडा-थोडा भर कौडियो के मुख को शुद्ध टकण और बकरी के दूध एक मे पिसे हुए से बदकर के सुखाले। फिर शराव-सम्पुट मे वद कर गजपुट मे पुट देवे । पुट के अनन्तर शीतल हो जाने पर मय कौडियो के पीस कर महीन चूर्ण बनाकर शीशी मे भर ले । इस राजमृगाङ्क का सेवन १ से ४ रत्ती की मात्रा मे । १० पीपल और २१ काली मिर्च के चूर्ण, घी ३ तो, मधु १ नोले के साथ सेवन करना चाहिये । यह सभी प्रकार के क्षयरोग मे अमोघ औपधि है। महामगाड रस मे सुवर्ण भस्म १ भाग, रस सिन्दूर २ भाग, मुक्ता भस्म तीन भाग, शद्ध गधक ४ भाग, स्वर्णमाक्षिक भस्म ५ भाग, रजत भस्म ६ भाग, प्रवाल भस्म ७ भाग, शुद्ध टकण २ भाग, हीरे का भस्म सम्पूर्ण का ? भाग (हीरा भस्म के अभाव मे वैक्रान्त भस्म छोडने का विधान है) के योग से बनाया जाता है। चतमुख रस-शुद्ध पारद, शुद्ध गधक, लौह भस्म, अन भस्म प्रत्येक का एक भाग और सुवर्ण भस्म है भाग । प्रथम पारद और गधक की कज्जली करके उसमे अन्य भस्मे मिलावे । पीछे उसमे ग्वार पाठा (कुमारी ), ताजा गिलोय, त्रिफला, नागर मोथा, ब्राह्मी, जटामासी, लोग, पुनर्नवा और चित्रक मूल के यथालभ्य स्वरस या क्वाथ मे एक-एक दिन तक मर्दन करके एक गोला बनाकर धूपमे सुखावे । जव गोला सूख जाय तो उस पर एरण्ड को हरी पत्ती लपेट कर सूत से बांधले । फिर उसको धान्य की कोठरी में धुसेड कर तीन दिनो तक रहने दे। तीन दिन के बाद उसको निकाल कर एरण्डपत्र को हटाकर पुन कई दिनो तक लगातार घोट कर शीशी मे भर कर रखले । मात्रा १-२ रत्ती अनुपान--त्रिफला चूर्ण १ माशा और मधु १ तोला मे मिलाकर सुबह शाम सेवन के लिये दे ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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