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________________ भिपक्कर्म-सिद्धि ३४० वन तण्डुलीयक (वन चौलाई), १९ तण्डुलोदक २० चंदन २१. पठानी लोध्र का प्रयोग भी लाभप्रद होता है ।" 1 नासागत रक्तपित्त में स्थानिक उपचार - रोगी को पीठ के बल लेटा देना चाहिए, उसके सिर को शीतल जल से धो देना चाहिए । सिर पर वरफ की थैली रखने या वरफ के रगडने से भी लाभ होता है। सिर पर गोवृत और कपूर मिलाकर अभ्यंग, शतधीत या सहस्रधौत घृत का अभ्यग- हिमाशु तैल का लगाना भी लाभ करता है । कई प्रकार की ग्राही औपवियो के स्वरसो का नाक मे वूद बूंद करके छोडना भी उत्तम रहता है । जैसे १ चीनी मिलाकर दूध या जल को पीने के लिए देना चाहिए साथ ही उसकी कुछ बू दो को नाक मे भी छोडना चाहिए । २ दाडिम के फूल का स्वरस नस्य अथवा ३ आम की गुठली को पानी मे पीस छान कर उसका नस्य ४. ताजा दूव हरी या श्वेत के स्वरस का नस्य अथवा ५ प्याज के स्वरस का नस्य ६ वब्चूल की पत्ती का स्वरस नाक मे देना उत्तम रहता है । इसी प्रकार ७ लाक्षास्वरस का नस्य अथवा ८ हरीतको स्वरस का नस्य भी हितकर होता है । ९ जब रक्तस्राव बहुत तीव्र हो तो पच चोरी कपाय में कपडे की वर्ति मे भिगो कर नाक को भर देना आवश्यक होता है । १० फिटकिरी, माजूफल और कपूर का चूर्ण महीन कर नाक मे बुरकाने ( अवधूलन) से भी लाभ होता है । ११. आँवले को काजी मट्टे या जल मे पीस कर कल्क वना कर गोघृत मे छोक कर ठंडा करके सिर और मस्तक पर मोटा लेप करने से सद्यः रक्तस्राव वद होता है । यह एक उत्तम और अनुभूत उपक्रम है । लिखा भी है कि यह उपाय रक्त के वेग को उसी प्रकार रोकता है जिस प्रकार सेतु तोय के वेग को । यदि नासागत रक्तस्राव वडा हठी स्वरूप का हो तो उसमे दहन कर्म की सलाह रोगी को देना चाहिए। रक्तस्राव जब किसी तरह से वद न हो तो 'असिद्धिमत्सु चैतेषु दाह परममिष्यते' सुश्रुत ने दाह कर्म का ही उपदेश दिया है, इसके लिए आज के युग में Electric Cateurization प्रचलित इसकी व्यवस्था करनी चाहिए । आभ्यंतर उपचार - इन स्थानिक उपचारो के अतिरिक्त रक्तपित्ताधिकार में वर्णित बहुविध भेपज योगो का आभ्यंतर प्रयोग भी रोगी मे करने चाहिए । १ उगीरकालीयकलोध्रपद्मक-प्रियङ्गका कट्फलगड्खगैरिका । पृथक् पृथक् चन्दनतुल्यभागिका सगर्करा तण्डुलधावनप्लुता । ( चचि ४)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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