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________________ चतुर्थ खण्ड : दसवाँ अध्याय ३२६ इनमे शाखाश्रया निश्चित रूप से पित्त नलिका के अवरोध से उत्पन्न होती है जिसमे पित्त का पित्त-नलिका के द्वारा अन्त्र मे उत्सर्ग नही होता है ( obstructirre jaundice) फलत पुरीष का रग श्वेत होता है। इसको शाखाश्रित कामला कहते है। इसमे कुपित कफयुक्त वायु कोष्ठस्थ पित्तको शाखा मे प्रक्षिप्त कर देती है अत कोष्ठ मे श्लेष्मा की वृद्धि होती है, पित्त का मार्ग कफ से रुद्ध हो जाता है और पुरीप तिलपिटवत् श्वेत होकर निकलता है और मत्र, त्वचा हल्दी के रग के हो जाते है अत वायु एवं कफ के शमन, अग्नि के दीपन, कफ के पाचन तथा पित्त को कोष्ठ मे लाने का उपाय करना चाहिये तदनन्तर कोष्ठाश्रया कामला की चिकित्सा पूर्वोक्त करनी चाहिये । १ गासाधित कामला को अल्पपित्ता कामला भी कहते है। इसमे पित्त कफ से आवत रहता है अस्तु कफ के पाचन तथा वायु को अनुगुण कर के पुरीप मे पित्त का रग आने पर्यन्त कटु-तीक्ष्ण-उष्ण-रूक्ष-लवण और अम्ल पदार्थों का सेवन कराना चाहिए। पित्तको स्वस्थान ( कोष्ठगत ) पर आ जाने, पुरोप के पित्त से रजित हो जाने सथा उपद्रवो के गान्त हो जाने पर कामला की पूर्ववत् सामान्य चिकित्सा करनी चाहिये । अर्थात् कोष्ठाश्रित कामलावत् चिकित्सा करनी चाहिये । शाखाश्रया कामला के ये विशिष्ट उपक्रम है ।२।। पित्त को स्वस्थान पर लाने के लिये मयूर, तित्तिर एव मुर्गे के मासरस को कटु-अम्ल और रूक्ष बना कर रोगी को खाने के लिये देना चाहिये। सूखी मली, कुलथी की यूप के साथ अन्न का सेवन कराना भी उत्तम रहता है। मातुलुङ्गादि योग-(विजौरा या कागजी ) नीबू का रस ६ माशे, मधु ६ माशे, पिप्पली चूर्ण ४ रत्ती, कालीमिर्च चूर्ण ४ रत्ती, शुण्ठी चूर्ण ४ रत्ती एक मे मिलाकर दिन में तीन बार सेवन । इन द्रव्यो के उपयोग से पित्त अपने कोष्ठगत आशय मे पुन आ जाता है । १ तिलपिष्टनिभ यस्तु वर्च सृजति कामली । श्लेष्मणा रुद्धमार्ग तत् पित्त श्लेपमहरैर्जयेत् । २ कटुतीक्ष्णोष्णलवर्ण शाम्लैश्चाप्युपक्रम । आपित्तरागाच्छकृतो वायोश्चाप्रशमाद् भवेत् ।। स्वस्थानमागते पित्ते पुरीपे पित्तरजिते । निवृत्तोपद्रवस्य स्यात् पूर्व कामलिको विधि ॥ ३ बहितित्तिरदक्षाणा रूक्षाम्ल कटुकै रस । शुष्कामलककौलत्थैर्यर्षश्चान्नानि भोजयेत् ।। मातुलुगरस क्षौद्र पिप्पलोमरिचान्वितम् । सनागर पिवेत् पित्त तथास्यति स्वमाशयम् । (च चि १६)
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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