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________________ ३१० भिपकम-सिद्धि इन क्रिमियो का मन्त्र अकुग ( Hooks) या बटिग के समान होता है पौर इन अगो के द्वारा ये आत्र में चिपकी रहती है और रक्त का पान करती रहती है। परिणामत इन कृमियो मे उपपृष्ट व्यक्ति में रक्तमय या पाण्डुता की उत्पत्ति (Anaemia) होती है । रक्त मे गोणाग ( Haemoglobin) की कमी हो जाती है-रोग के अधिक तीव्र होने पर रक्त के लाल कणो की संन्या भी कम हो जाती है । अस्तु उपचार-काल में रक्तक्षय की चिकित्सा का भी ध्यान रखना पड़ता है। गण्डूपद कृमि (कंचुवे या Round worms )-ये कृमि अधिकतर बालको में पाई जाती है, परन्तु बडी यायु में भी हो सकती है। प्राचीन सहिता में गण्टूपद नाम से ग्लेप्मज वर्ग में इसका प्रमंग पाया जाता है। रोगी व्यक्ति के मल से निकले हुए बगड़ो मे उपनृष्ट खाद्य पदार्थ के सेवन से ये स्वस्थ व्यक्ति के मात्र में पहुँच जाती है। मामागय में अम्ल से उनके ऊपर फा नावरण गल जाना है तब ये स्बतत्र होकर यकृत् में होती हुई मिरा द्वारा हृदय और अंगमुख कृमि की भाति फुफ्फुस में जाकर पुष्ट होते है । वहां से पुन. मामागय में होती हुई मात्र में प्रविष्ट होती है । यहा पर इनकी वृद्धि होती है और परिपश्वावस्था को प्राप्त करती है। ये कृमिया अत्यन्त चंचल बोर गतिगील होती है। प्राय. मात्र में कुण्डलित अवस्था में रहती है और विभेद, अतिमार, उदरशूल, हुलास, वमन, सन्तन स्वरूप का ज्वर आदि पैदा करती है। कई बार वमन के साथ मुवि से और कई बार पान्याने के जरिये मल द्वार से निकलती है। इनके अण्डे प्राय. पाखाने के जरिये बाहर निकलते रहते है जो अत्यन्त मृटम होने से बच रहते है-कच्चे माक-पत्रनाक आदि के जरिये मुग्व मे निगले जाकर स्वस्थ व्यक्ति के यामागय में जाकर उपमष्ट करते रहते है। कभी कभी कई कृमिया एक मे मिल कर कुण्डलित होकर आत्र छिद्र को रद्ध कर यान्त्रावगेय ( Acute Intestinal obstruction ) की अवस्था उत्पन्न कर देती है और कई बार पित्तवाहिनी में अवरोध पैदा करके कामला भी भी उत्पन्न कर देती है। स्फीन कृमि-( Tapeworm ) कई जाति की कृमि होती है। ये फीते के ममान चोटी, चिपटी और बहुत लम्बी (८-२० फीट) होती है। ये अपने गोल सिर में स्थित बदिगो द्वारा मात्र में चिपकी रहती है। इनके शरीर मे अनेक पर्व होते है और प्रत्येक पर्व में अण्डे होते है। परिववव होने पर मंतिम कुछ पर्व (४-६ ) टूट कर गिर जाते है उनके बाकार कह के बीज के समान होते है।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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