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________________ २८६ भिपकर्म-सिद्धि का धूपन करने से रक्तन्त्राव वद होता है । दाहशामक अभ्यंग-दाह के निवारण के लिये गतवीत अथवा सहस्रवीत घृत का लेप अगुली की सहायता से गुदा मे करना । अवगाहन-यदि अधिक रक्तस्राव हो और गुदा मे दाह हो तो, मधुयष्टि, खम, पद्म काप्ट, रक्त चदन, कुग और कास की जड के उवाले शीतल जल को टब मे भर दे और उसमें रोगी को कुछ देर के लिये वैठावे । पिचुधारण-कई वार रक्तार्ग मे अत्यधिक रक्तस्राव होने लगता है और वह वद नही होता उस अवस्था मे वर्फ मे तर करके कपडे को वत्ति ( Gawge ) या उदुम्बर सार मे भिगोयी वत्ति को गुदा मे भरना लाभप्रद रहता है । रसोत और गोधृत, राल और गोघृत, सफेद चदन का घृष्ट और गोधत अथवा नीलोत्पल चूर्ण और गोघृत का गुद वलियो मे लेप भी लाभप्रद रहता है । पिच्छा वस्ति-जवासा, कुश और कास की जड, मेमर का फूल, बरगद, गूलर और पीपल का गुग प्रत्येक दो-दो पल, जल 3 प्रस्थ, गोदुग्ध १ प्रस्थ सबको एक मे पक्रावे जव दूध मात्र अवशिष्ट रहे तो छान ले । उममे सेमल की गोद, लाजवन्ती, चंदन, नीलोफर, इन्द्रजौ, फूल प्रियगु और कमल की केसर का कल्क छोडकर मथकर वस्ति यंत्र में भरकर वस्ति दे । यह योग मद्य. रक्तस्तभक होता है और रक्तार्ग के अतिरिक्त प्रवाहिका और गुदभ्रश में भी उपयोगी है। अर्ग रोग मे व्यवहत होने वाले प्रसिद्ध एवं दृष्टफल योगमोदक-नागरादि मोदक, अगस्ति मोदक, स्वल्प शूरण मोदक तथा, ' वृहत् सूरण मोदक-सूरणकद (ओल या जमीकद ) १६ भाग, चित्रक की जड ८ भाग, गुठी चूर्ण ४ भाग, कालीमिर्च का चूर्ण २ भाग, त्रिफला चूर्ण ४ भाग, पिप्पली, पिप्पली मूल, तालोग पत्र, गुद्ध भल्लातक, वायविडङ्ग प्रत्येक ४ भाग, मुमलीकद ८ भाग, वद्धदारुक ( विधारे के वीज का चूर्ण) १६ भाग, छोटी एला ४ भाग । इन सभी द्रव्यो की मिश्रित मात्रा के द्विगुण पुराना गुड । मात्रा २ तोले । अनुपान दूध । इस योग के लम्बे समय तक प्रयोग करने से बिना किसी शस्त्र कर्म क ही अर्गोङ्कर नष्ट हो जाते है और अग्नि दीप्त होती है। काङ्कायन मोदक-हरीत की चूर्ण ४ तोले, जीरक, मरिच, पिप्पली प्रत्येक १ तो, पिप्पली मूल दो तोले, चव्य का चूर्ण ३ तोले, चित्रक चूर्ण ४ तोले, गुठी चूर्ण ५ तोले, गुद्ध यवक्षार २ तोले, शुद्ध भल्लातक ८ तोले, सूरण कंद १६ तोले। इस चूर्ण से द्विगुण पुराना गुड ( १ सेर ) लेकर भली प्रकार से आलोडित कर पूरा करे। ४ मागे की मात्रा मे मोदक बना ले । प्रात १ या दो मोदक । गीतल जल या तक्र से ।
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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