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________________ २८२ भिपकर्म-सिद्धि पित्त की अधिकता मे मच्योद्धृत तथा कफ की अविकता में पूर्णोद्धृत या स्क्ष तक पीने को देना चाहिये । ___ तक्र को चित्रकमूल चूर्ण के साथ मिश्रित करके पिलाने का नियम है । इसके लिये एक विधि यह कि चित्रक के जड के कल्क को मिट्टी की हडिया के भीतर लेप कर के मुखालेवे और उसमे तक बालकर पी जावे अथवा उसमें यथाविधि गोदुग्ध छोडकर दही जमा ले, उस दही या तक्र का सेवन करे। यह अर्नाहर प्रयोग होता है । यह संभव न हो तो चित्रकमूल चूर्ण ( एक मागा, तक्र में मिलाकर पी जावे।' अथवा अजवायन ३ माने । विडलवण तोला तक्र में मिलाकर भोजन के बाद सेवन करना कोष्टवद्धता को दूर करता है।' शुष्कार्य में भेषज-आभ्यंतर प्रयोग-- गुडहरीतकी- मागे हरीतकी और एक तोला गुड मिलाकर प्रात: काल लेवन। २ एक द्रोण गोमूत्र में हरीतकी के सौफलो का स्वेदन करके एक एक का मुवह गाम ब्रह्मचर्य रखकर सेवन । ३ सगुड़ कणा अभया-गुड़ ' तोला, पिप्पली ४ रत्ती और हरीतकी ६ मागे मिश्रित सेवन । ४ त्रिवृत् (निगोय) ३ मागे या दन्तीमूल का चूर्ण : मागे तथा गुड़ १ तोला के साथ मेवन । ५ दिल आमकर-तिलका चूर्ण ६ माने और गुद्ध भल्लातक एक मामा मिश्रितकरता या गोदुग्ध या शीतल-जल से सेवन । ६ तिलमल्लातककालो तिल, गृह मत्लातक तथा गुड का समान मात्रा में वना योग दो मागे भर की मात्रा में गोली बनाकर सेवन । ७ चित्रक मूल का मट्ठा या नीयु के माय भवन । ८ तक या मळे के साथ जोके सत्त का नमक मिलाकर सेवन । ९ १ त्वच चित्रवमूलम्य पिटवा कुम्भं प्रलेपयेत् । तक वादवि वा तत्र जातमोहरं पिवेत् ॥ वातश्लेप्मार्गसा तक्रात्पर नास्तीह भेषजम् । तत्प्रयोज्यं ययादोपं सन्नहं समेव वा ॥ स्लमर्वोद्धृत स्नेह यतश्चानुद्या वृतम् । तक दोणग्निवनविन त्रिविध तन्त्रयोजयेत् ॥ भ्रमावपि निपिक्तं तहहेत्तक तृणोलुपम् । कि पुननिकायान्ने गप्पाण्यामि देहिन ॥ त्रोत मु तक्रगदेषु रस साम्यमुपति यः। तेन पुष्टिवल वर्ण. प्रपञ्चोपजायते ॥ नास्ति तकात्परं किंचिदौण्वं कफवातजे । पिवेदहरहस्तक निरन्नो वा प्रकामत. ॥ अव्यर्थ मन्दकायाग्नेस्तक्रमवावचारयेत् । (चर) २ विविवन्वे हित त्क्रं यमानीविडमयुतम् । (भै र )
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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