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________________ चतुर्थ खण्ड : सप्तम अध्याय २६९ है। इनसे अग्नि का दोपन, आम का पाचन तथा द्रवधातु-सरण का ग्रहण तथा वोभन भी एक साथ ही सभव रहता है। मोदको मे श्री कामेश्वरमोदक, मेथी मोदक, बृहद्मेथी मोदक, मदनमोदक, मुस्तादि मोदक, कामेश्वर मोदक, जीर कादि मोदक, ( वग, अभ्र, लोह, युक्त), वृहज्जोर कादि मोदक तथा अग्नि कुमार मोदक । इन मोदको को मात्रा-३ तोले से १ तोले तक । अनुपान-शीतल , जल या बकरी का दूध । रसयोग-हसपोट्टलो रम, ग्रहणीकपाट पोट्टली रस, अग्निकुमार रस । ग्रहणीगजेन्द्ररम । मणीगार्दूल रस । ग्रहणी कनाट रस--इस नाम से कई योग भपज्यरत्नावली मे अभिहित है । जैसे गहणीकपाट रस (स्वल्प अहिफेन युक्त ), ग्रहणीकपाट रस द्वितीय, तृतीय, चतुर्य, पत्रम, ग्रहणीवज्रकपाट रस, ग्रहणीवज्रकपाट रस ( वहद्-रजत, लोह, सुवर्ण और मुक्ता युक्त ) तथा संग्रहग्रहणीकपाट रस (मवता-स्वर्ण-अम्रक-वराट भस्म युक्त-अवक्षय मे विशेप लाभप्रद-जहाँ पर ग्रहणी के नाथ मदज्वर भोचिरकालीन हो।) तथा वज्रकपाट रस (अहिपेन युक्त)। महागधंकम--ममपरिमाण मे शुद्ध पारद तथा शुद्ध गधक की कज्जली बनाकर लौह की कलछी मे डाल कर मद आंच पर गर्म करे। फिर उसे पतला करके उसमे बराबर माना मे जायफल, जावित्री, लवङ्ग, नीम की पत्ती, सिन्दुवार को पत्ती, इलायची के दाने का महीन चूर्ण मिला लेना चाहिये । फिर पानी मिलाकर खरल मे घोट कर एक कर लेना चाहिए। फिर शुद्ध की हुई मोती के सीप के सम्पुट में ( भली प्रकार कपडमिट्टी करके अर्थात् दो सीप के भीतर भर कर उसके ऊपर केले का पत्ता लपेट कर दो अगुल मोटा कपडे और मिट्टी का लेप कर के ) अग्नि मे पाक करना चाहिये। फिर पुटपाक हो जाने पर उसके आवरण को दूर करके शुक्ति समेत औपधि को खरल कर के महीन चूर्ण को शीशी में भर कर रख लेना चाहिये। मात्रा-३ रत्ती से ६ रत्ती तक । बालको के अनेक रोगो से रक्षा करने के लिये एक महौपध है। इस मे शक्ति की राख पर्याप्त मात्रो मे रहती है--जो जीव की हड्डी का राख ( Bone charcol) और आन्त्र गत वायु का शोषण ( Gasabsorbent) होकर अतिसार मे अदभत लाभ दिसलाती है। वडो मे भी इसका प्रयोग हो सकता है, परन्तु वालातिसार यावाल-ग्रहणी मे यह विशेषतया लाभप्रद है। वटिका--वैद्यनाथ वटिका, रसाभ्रवटी, महाभ्रवटी (मन शिला तथा कृष्ण सर्पविषयक्त ), पानीयभक्तवटिका प्रभृति योग उत्तम है। इसी प्रकार शम्बू कवटी. दुग्धवटी, जाती फलाद्य वटी भी अच्छे योग है। शम्बूकादिवटी-शम्बूक
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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