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________________ २६० भिपकर्म-सिद्धि - रोग कष्टसाध्य हो जाता है । रोग में निवृत्त होने के अनन्तर भी पुनरावृत्ति ( Relapses ) की सभावना रहती है । अस्तु सम्पूर्ण पचन संस्थान का नवीनीकरण (Over Havling) करना ग्रहणी चिकित्सा का लक्ष्य रहता है । ग्रहणी में चिकित्साक्रम भी दो प्रकार का रखा जाता है - एक वातातपिक ( Ambulatory or Outdoor treatment ) और दूसरा कुटी प्रावेगिक ( Indoor Hospital ) | यदि रोग नया हो विकृति बहुत वढ़ी हुई न हो तो सामान्य उपचारो मे प्राय. रोगी ठीक हो जाता है, परन्तु वहुत वढे हुये रोग में विशिष्ट उपक्रमो मे उपचार चिकित्सालय में रख कर कल्प-क्रम से करना होता है । - सामान्य क्रियाक्रम — जैसा कि प्रारंभ में ही बताया जा चुका है कि ग्रहणी वह व्याधि है जिस मे पाचन तथा गोपण नामक उभयविध कार्य दूषित हो जाते हैं (A syndrome of Indigestion and Malabsorption) अस्तु ऐमी चिकित्सा जो अजीर्ण ( Dyspepsia ) को भी ठीक करे साथ ही माथ अतिसार ( Diarrhoea ) को संभाले ऐा उपचार करना अपेक्षित होता है | बस्तु आम तथा निराम दोनो अवस्थावो का विचार करके चिकित्सा का प्रारंभ करना चाहिये । यदि आम रस की प्रबलता हो तो रोगी का स्नेहन और स्वेदन करके वमन और विरेचन देकर शुद्धि करनी चाहिये । पञ्चात् लंघन, दीपन और पाचन प्रभृतिक्रियाओ मे उपचार करना चाहिये | पंचकोल से तया का सेवन भी कराना चाहिये । आमावस्था मे उपक्रम - आहार के विदग्ध होने से आध्मान, लाला प्रमेत्र, उदर शूल, गले मे जलन, अरुचि और गौरवादि लक्षणो की उपस्थिति से ग्रहणी रोग में आम दोप को विद्यमानता समझना । अस्तु इसके निर्हरण के लिये रोगी का स्नेहन, स्वेदन करके वमन करा देना चाहिये | दो चार वमन हो जाने से आमाशय गत आम दोप निकल जाता है । वमन कराने के लिये मदन फलके कपाय में पिप्पली और सर्पप का क्ल्क मिलाकर देना चाहिये अथवा केवल गर्म जल और मेवा नमक मिलाकर पिला कर वमन करा देना चाहिये । यदि आम दोप कोष्ठ में लीन हो ओर पक्वाशय मे स्थित हो तो दीपन औपवियो के साथ कुछ रेचक जोपधियो को मिला कर कोष्ठ की शुद्धि करा देनी चाहिये । यदि आम दोप १ ग्रहणीमाश्रितं दोपमजीर्णवदुपाचरेत् । अतीसारोक्तविधिना तस्यामं च विणचयेत् ॥ शरीरानुगते सामे रसे लङ्घनपाचनम् । विशुद्धामागयायास्मै पंचकोलादिभिर्श्वतम । दद्यात् पेयादि लध्वन्न पुनर्योगाञ्च दीपनान् ॥
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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