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________________ चतुर्थ खण्ड पष्ठ अध्याय २४६ निकाल कर ठंडा करे । सम्पुट को खोल कर द्रव्य को पीस कर रख ले | मात्रा १-२ रत्ती अनुपान - भनेजीरे का चूर्ण १ माशा और मधु । जीर्ण ज्वर, पाण्डु रोग, प्रमेह में लाभप्रद । यह वल्य एव रसायन योग है । ५ अपूर्व मालिनी वसन्त - ( प्रमेहाधिकार ) जीर्ण ज्वर मे यह भी एक लाभप्रद योग है । जीर्ण ज्वर में व्यवस्था पत्र – स्वर्ण वसन्त मालती १-२ रत्ती, शिलाजत्वादि या चदनादि या यक्ष्मादि या सर्वज्वरहर लोह ३ रत्ती, त्रिवग भस्म १-२ रत्ती, प्रवाल १-२ रत्तो, शृङ्ग भस्म १-२ स्ती, गुडूची सत्त्व १ - माशा, सितोपलादि चूर्ण ३-४ माशे मिलाकर पीस कर तीन मात्रा बनाले, अनुपान वृत और मधु या केवल मधु, दिन मे तीन वार । द्राक्षारिष्ट, अश्वगंधारिष्ट, बलारिष्ट या दशमूलारिष्ट भोजन के बाद २ चम्मच दवा एव वरावर पानी मिला कर | चन्द्रप्रभावटी ( अर्श या प्रमेहाधिकार ) १ गोली रात मे सोते वक्त दूध से 1 चदनवलालाक्षादि तैल, लाक्षादि तैल या महालाचादि तैल का अम्पग कराना चाहिये । मिर पर हिमाशु तैल का अभ्यंग कराना चाहिये । इस व्यवस्था से सभी जीर्ण ज्वरो मे विशेषत. राजयक्ष्मा के ज्वरो मे सुन्दर लाभ देखने को मिलता है । पूरे शरीर पर पष्ट अध्याय ज्वरातिसार प्रतिषेध "यदि पित्तज ज्वर मे अतिसार हो जाय अथवा अतिसार के रोगी मे ज्वर हो जाय ऐमी अवस्था मे दोप और दूव्य ( पित्त दोष, पित्तरूप अग्नि दृष्य ) इन दोनों के समान होने के कारण आयुर्वेदज्ञो ने इस रोग को ज्वरातिसार को सज्ञा दी है ।"१ ज्वरातिसार मे ज्वर और पुरीप का अतिसरण ये दो ही प्रमुख लक्षण पाये जाते है । इन दोनो की उत्पत्ति मे आम दोष ही कारण के रूप मे होता है । यह आम दोप अग्नि का विनाश करके ज्वरातिसार रोग पैदा करता है । ज्वरातिसार की उत्पत्ति मे पित्त का प्रकोप होना प्रधान कारण माना गया है और उसीसे आम दोप की वृद्धि हो कर रोग पैदा होता है । ऐसी अवस्था मे शका यह होती है कि पित्त साक्षाद् अग्नि स्वरूप हे और आग्नेय गुण से युक्त होना है तो उसका वृद्धि से अग्निनाश क्यो कर होता है तथा आमदोपता रस मे केमे आ सकती है ? इसका का समाधान यह है कि पित्त आग्नेयगुणभूयिष्ठ होते १ पित्तज्वरे पित्तभवेऽतिसारे तथाऽतिसारे यदि वा ज्वर स्यात् । दोपस्य दूण्यस्य च साम्यभावात् ज्वरातिसार कथित भिभि ॥ /
SR No.010173
Book TitleBhisshaka Karma Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnath Dwivedi
PublisherRamnath Dwivedi
Publication Year
Total Pages779
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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